मुखौटों और प्रचार तंत्र के सहारे भाजपा

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

मुखौटों और प्रचार तंत्र के सहारे भाजपा

डा रवि यादव

 अब यह स्पष्ट हो चुका है  कि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में मुख्य मुक़ाबला समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच सिमट चुका है. चुनाव में धर्म , जातियाँ तो अहम भूमिका में होंगी ही किंतु जाति- धर्म से हटकर भी कुछ अन्य मुद्दे भी होंगे जो चुनाव को प्रभावित करेंगे.

कोरोना महामारी के समय बिना पूर्व सूचना लाँकडाउन में लाखों मज़दूरों को पैदल तपती धूप में नंगे पाँव चलने के लिए मजबूर किया गया , बहुतों की जान गई और जो घर पहुँचे उनमें बहुतों को इलाज कराना पढ़ा और बेरोज़गारी और इलाज पर हुए ख़र्च ने उन तमाम मज़दूरों को पुनः ग़रीबी रेखा के नीचे पहुँचा दिया जो पिछले कुछ सालों में अथक प्रयास से बीपीएल से बाहर आए थे . बिहार और यूपी के प्रवासी मज़दूरों की संख्या सबसे अधिक थी . यूपी सरकार ने ठीक उसी समय मज़दूरों के ज़ख़्मों पर नमक रगड़ते हुए श्रम कानूनो में संशोधन कर मज़दूरों को कार्य के घंटे सहित अन्य उन अधिकारो से वंचित किया जो उन्होंने पिछले लम्बे संघर्ष से हासिल किए थे. यह बेहद तकलीफ़देह था जिसका असर बिहार चुनाव में देखा जा चुका है.  यूपी ने करोना की दूसरी लहर में जो दृश्य देखें वे और भी भयावह थे मोक्ष दायिनी गंगा शव वाहिनी और प्रदेश क्रीमेटोरिअम में बदल गया था मुख्यमंत्री के दवाई, आक्सीजन और अस्पताल उपलब्ध होने के दावे पर हाईकोर्ट को कहना पढ़ा कि “यूपी राम भरोसे है”.

चरम बेरोज़गारी व अभूतपूर्व महँगाई ने प्रदेश के आम जनजीवन को बुरीतरह प्रभावित किया हुआ है. किसानों की आय दो गुना होने का दावा खोखला साबित हुआ है उलटें डीज़ल के अभूतपूर्व भाव से महँगी जुताई,सिंचाई, ठुलाई,  महँगी खाद व पेस्टीसाइड से लागत दो गुनी हो चुकी है,लाखों साँड़ उनकी नीद हराम किए हुए है उसपर सरकार की ढिठाई कि किसानों को जीप से कुचलने वालों के साथ खड़ी दिखाई देती है.

ग़ैर यादव पिछडे और ग़ैर जाटव दलित लेटरल एंट्री , सरकारी वकीलों, गौरखपुर, बाँदा विश्वविद्यालयो व शिक्षक भर्ती में आरक्षण नियमों की अवहेलना कर हक़ मारे जाने से ग़ुस्से में है तो जातिवाद का आलम यह है कि पीसीएस से प्रोन्नति पाकर आईएसएस बन डीएम पद पाने वाले प्रदेश के 21 अधिकारियों में 17 अकेले मुख्यमंत्री के सजातीय है.

इन हालातों में उत्तर प्रदेश का चुनाव परिणाम क्या होना चाहिए यह बताना कोई रॉकेट साइंस नहीं है, अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ के बीच शिक्षा ,शालीनता, सोच और किए गए कार्यों के बीच तुलना होगी और वोट भी उसी आधार पर होंगे तो भाजपा को भारी मुसीबत का सामना करना पढ़ेगा किंतु ऐसा होने वाला नहीं है. 

कभी भाजपा के थिंकटेंक का ख़िताब प्राप्त गोविन्दाचार्य ने स्वर्गीय अटलबिहारीजी को मुखौटा कहा था.संघ के पास मुखौटों का ज़ख़ीरा है, नक़ली नाम ,नक़ली पहचान,नक़ली वेशभूषा,नक़ली व्यवसाय बनाकर भाजपा के लिए ज़मीन तैयार करने वाले वक़ील,डाक्टर,सामाजिक कार्यकर्ता,दलित चिंतक,एंकर,सैफोलोजिस्ट,साधु,राजनीतिक विश्लेषक,इतिहासकार , कार्टूनिस्ट.....सबका रोल स्क्रिप्टड होता है, समर्थन करने वाले और विरोध करने वाले भी. वे सार्वजनिक मंचो पर मुद्दे उछालते है बहस को जन्म देते है धारणा बनाते और बिगाड़ते है, जो सार्वजनिक मंचो पर बोलते है उसपर निजी जीवन में यक़ीन रखें यह ज़रूरी नहीं, बल्कि हँसते है कि लोग उनकी अमुक बात पर भरोसा कर रहे है. नोट बंदी के बाद मनोज तिवारी पार्टी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी के साथ बैठकर हँस रहे थे कि कैसे लाइन में लगे लोग उनके द्वारा देश भक्त कहे जाने पर ख़ुश हो रहे थे. पिछले वर्ष एक बड़े एंकर के व्यक्तिगत चैट लीक हुए तो पता चला कि उन्होंने अपने ख़ास मित्र को लिखा था कि “देश की अर्थव्यवस्था बर्बाद कर दी है सरकार ने” यद्यपि कि एंकरिंग करते हुए वे देश को आर्थिक महाशक्ति बना देने का दावा करते है.

आजकल कुछ सैफोलोजिस्ट चेनलों पर बैठकर कुछ दावे करते है जैसे -

भाजपा को पिछले चुनाव में क़रीब 40% (39.97) वोट मिला था जबकि सपा कभी 30% के ऊपर नहीं गई. लेकिन वे ये नहीं बताते कि 2017 के पहले तीन चुनावों 2002,2007,2012 में भाजपा को औसतन 17.35% और सपा को औसतन 27.17%  वोट मिला था. जबकि राममंदिर , बाबरी विध्वंस और कार सेवकों पर गोली चलाने की घटनाएँ उसके पहले हो चुकी थी. फिर 2012 में मात्र 15% वोट लेने वाली पार्टी 25 % नए वोटर जोड़ने में सफल हुई तो मुद्दा धर्म का नहीं था . विकास रोज़गार व पिछड़ो -दलितों के समूहों को अधिक भागीदारी देने का वादा था  . नए जुड़े मतदाता उसके कोर वोटर नहीं है वे यदि महसूस करते है कि जिन अपेक्षाओ से जुड़े थे वे पूरी नहीं हुई है तो उनका अलग होना भी निश्चित है.

दूसरा ये सैफोलोजिस्ट राजनैतिक विश्लेषक भेषधारी कहते मिलते है कि अति पिछड़ी अति दलित जातियाँ भाजपा से नाराज़ तो है मगर वे यादवों की दबंगई के कारण सपा के साथ नहीं जाएँगी. क्या इन विद्वानों को यह पता नहीं है कि समूह के रूप में यादव कब किस शताब्दी में ठाकुरों से अधिक दबंग थे या आज भी है. जिन व्यक्तिगत यादवों को दबंग की श्रेणी में रखा जा सकता है उनकी छवि सामंतो और दबंगों से दलितों और पिछड़ों को बचाने की ही रही है चाहे वे मित्र सेन यादव हो, दुर्गा , रामाकान्त , उमाकांत या वालेश्वर यादव. यहीं दबंग यादव रामाकान्त या डीपी यादव भाजपा में रहते है तब निरीह पीड़ित हो जाते है ?

हर चेनल पर बैठे विश्लेषक ज़ोर शोर से एक और झूँठ फैला रहे है कि “सपा दलितों को साथ लाने का प्रयास नहीं कर रही” इसका लाभ भाजपा को हो रहा है. अमाँ मियाँ अम्बेडकर वाहिनी का गठन,मिठाई लाल भारती और इंद्रजीत सरोज के नेतृत्व में टीम जो कर रही है वह दलितों को साथ लाने का ही प्रयास है. 

कन्नौज में व्यापारी पीयूष जैन के ठिकानों पर छापेमारी में प्राप्त नक़दी को जिस तरह इन मुखौटों ने प्रचारित प्रसारित किया वह नियोजित था ऐसा नहीं कि मीडिया संस्थानो को पता नहीं था कि पीयूष जैन का सपा से कोई सम्बंध नहीं है .आईटी के बाद अभी ईडी और सीबीआई भी अपना रोल निभाती मिल सकती है ,अंत में अपराध सिद्ध भले न हो चुनाव के समय बदनाम करने का काम तो हो ही सकता है .देखना होगा कि ये मुखौटे चुनाव परिणाम तय करते है या स्वर्गीय गोपाल दास नीरज जी की सुप्रसिद्ध ग़ज़ल “ है बहुत अधियार अब सूरज निकलना चाहिए “  की ललकार  -


रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरह


अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए


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