यशोदा श्रीवास्तव
बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी पर सख्ती का असर जहांआरा के बसाए ऐतिहासिक शहर मऊ पर साफ दिख रहा है. अब यहां रोज रोज दहशत और दंगे की छाया नहीं, शांति, तरक्की और समृद्धि दिखने लगी है. लेकिन एक सवाल है कि क्या मऊ मुख्तार अंसारी से सचमुच मुक्त हो पाएगा?
आपराधिक मुकदमों की बात छोड़िए! अब तो अपराध और राजनीति एक दूसरे के पर्याय हो गए हैं. कहने को मुख्तार भी उन 45 विधायकों की सूची में है जिन पर एमपी एमएलए कोर्ट ने अलग अलग धाराओं में आरोप तय कर दिया है. कयास लगाया जा रहा है कि शायद ये आरोपी विधायक का चुनाव भी न लड़ पाएं. इन आरोपियों में सर्वाधिक 32 विधायक बीजेपी के हैं और सब के सब चुनाव लड़ने को लेकर बिल्कुल बेफिक्र हैं.
ऐसे में मुख्तार अंसारी भी बेफिक्र ही है. जहां तक दागियों को टिकट न देने का राजनीतिक दलों का वादा है तो यह पब्लिक को मूर्ख बनाने जैसा है. ठीक है सपा मुख्तार को न दे टिकट लेकिन जब उसकी सहयोगी पार्टी सुभासपा उसे टिकट दे तो इसे क्या माना जाय? जनता की आंख में धूल झोंकना ही तो! सपा हो या सुभासपा चाहे जिस पार्टी से मुख्तार मैदान में उतरे,उसकी हार आसान नहीं है क्योंकि यहां का जातीय अंकगणित ही कुछ ऐसा है. बस इसी अंकगणित के आधार पर मऊ के लोग इस बात से मुत्मईन नहीं है कि मऊ मुख्तार से मुक्त हो पाएगा?
यूपी के मऊ शहर की पहचान कभी दंगाइयों के शहर में थी लेकिन इधर माफिया नामधारी विधायकों व राजनीतिकों पर सरकार के संयंत्र पर कसे गए शिकंजे के बाद मऊ की ताने-बाने वाली पहचान वापस हुई है क्योंकि माफिया नामधारी यहां के विधायक मुख्तार अंसारी भी सरकारी शिकंजे की जद में हैं.
मऊ यूं तो कई बार दंगे की गिरफ्त में आया और मुक्त हुआ. लेकिन 2005 के भरत मिलाप के मौके पर फसादी अपने नापाक मक्शद में कामयाब हो गए. अफसोस कि उन फसादियों को मऊ के विधायक मुख्तार अंसारी का खुला संरक्षण मिला. जानकारों के मुताबिक जिस एतिहासिक भरतमिलाप को देखने के लिए जहांआरा ने ही मऊ कस्बे में खीरीबाग के मस्जिद के परिसर का चयन किया था वही जगह लंबे अरसे तक दंगे की आड़ में राजनीति चमकाने वालों का प्रमुख केन्द्र बना हुआ था. हाल यह था कि मऊ जनपद का नाम आते ही उस पर लगा दंगों का दाग हर किसी के जेहन में उभर जाता है. भयावह हालात का आलाम यह था कि जिले में स्थान्तरित होकर आने वाले अधिकारी यहां आने से कतराते थे. कारण यहां आने वाले प्रशासनिक अधिकारी यहां की जनसमस्याओं की ओर ध्यान देने के बजाय अपना समय त्योहारों को सकुशल निपटने में ज्यादा गवातें थे. लेकिन अब उस काली तस्वीर का रंग बदलने लगा है. उसमें सौहार्द व भाई चारगी का वह सुनहरा रंग दिखने लगा है जैसी इस शहर को बसाते वक्त जहांआरा ने कल्पना की होगी. धीरे धीरे इस शहर से दंगों का दाग धुलने लगा है और यहाँ अमन चैन के साथ तरक्की और समृद्धि देखने को मिल रही है. लोग ऊपर वाले से मन्नत कर रहे हैं कि काश! वर्षों बाद कायम यह अमन चैन कायम रह पाता.
कुछ परंपराएं भी आग में घी जैसी
धार्मिक त्यौहारों की बात करें तो दशहरे के अवसर पर आयोजित होने वाला भारत मिलाप मऊ ही नहीं आसपास के जिलों के लोगों के आकर्षण का केंद्र था. जहां आरा इसे इतना पसंद करती थीं कि स्वयं के बनवाए मस्जिद के परिसर में इसे आयोजित करने की इजाजत तक दे दी थीं. आज भी भरत मिलाप का आयोजन खीरीबाग मस्जिद के इसी परिसर में होता है.
2005 में भरत मिलाप के अवसर पर भड़काए गए दंगे की आग से यह शहर वर्षों तक झुलसता रहा. इस दंगे की जड़ में यहां के तत्कालीन और मौजूदा विधायक मुख्तार अंसारी की मौजूदगी की वजह सामने आई थी. पूर्वांचल को दहशतजदा कर देने वाले इस दंगे में सात लोग मारे गए थे. महीनों तक शहर कफ्यू की गिरफ्त में था और कइयों दिन तक इस रूट से गोरखपुर से बनारस जाने वाली ट्रेनों का संचालन ठप था. रोज कमाने खाने वालों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई थी.
मुख्तार अंसारी की उपस्थिति ने भले ही शहर को दंगे की आग में झोंक दिया था पर इसका असर सिर्फ एक वर्ग पर नहीं पड़ा था. व्यापारी से लेकर बुनकर ही नही हर किसी को इस दंगे ने कई साल पीछे ढकेल दिया था. बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी समेत 36 लोगों पर केस चला था. कई वर्षों बाद अदालत ने सभी को क्लीन चिट दे दी. इस घटना से यहाँ के जिम्मेदार लोगों ने एक सीख ली कि साप्रदायिक सौहार्द से ही शहर को विकास के रास्ते पर लाया जा सकता हैं. मऊ में पिछले एक दशक से सौहार्द की ही देन है कि यहाँ कई आधुनिक हास्पिटल सहित आधा दर्जन से अधिक मिनी माल खुल गए हैं. व्यापार ने भी अपनी रफ्तार पकड़ ली है और प्रशासनिक अधिकारी भी यहाँ आने पर अब शकुन महसूस करते हैं. बुनकरों के ताने बाने के इस शहर में वैसे त्योहार की चुनौतियों पर नजर डालें तो यहाँ का अधिकांश त्योहार साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से अति संवेदनशील है. चाहे शाही कटरा मस्जिद के मैदान में ठीक अजान के दौरान भरत मिलाप और विमान को मस्जिद की दीवार से टकराने की परंपरा या संस्कृत पाठशाला के सीढ़ियों पर चढ़कर जाने वाला मुस्लिम बंधुओं के ताजिये का जुलूस. इसके अलावा भी कई ऐसे त्योहार हैं जिनकी परंपरा दोनों समुदायों के सौहार्द को आमने सामने होने को विवश करती है लेकिन अब दोनों समुदायों की सूझबूझ ने अमन चैन की मिशाल को साल दर साल और मजबूती देने का काम किया है. शहर के समाजसेवियों का कहना है कि ऐसी परंपराओं पर रोक लगनी चाहिए जिससे आपसी सौहार्द बिगड़ता हो. समाजसेवी अरविन्दमूर्ति कहते हैं दोनों समुदाय के लोगों को एक साथ बैठकर इन परंपरओं को खत्म करने का रास्ता निकालना चाहिए.
मुख्तार अंसारी की मऊ में उपस्थिति ने किया था घी का काम
मऊ में वर्ष 2005 में हुए दंगे के भीषण रूप लेने के पीछे मुख्तार की उपस्थिति को भी जिम्मेदार माना जाता है. जरायम की दुनिया में मुख्तार की चर्चा तो हमेशा होती रहती थी, लेकिन मुख्तार का नाम सबसे अधिक चर्चा में वर्ष 2005 में ही आया था जब मऊ में दंगा हुआ था.
सात लोगों की हुई थी मौत, दर्जनों हुए थे घायल
मऊ के इस दंगे में सात लोगों की मौत हुई थी जबकि 36 लोग घायल हुए थे. अक्टूबर २००५ में हुए मऊ दंगे के दौरान मुख्तार अंसारी पर राम प्रताप यादव की हत्या करने का आरोप था. भरत मिलाप कार्यक्रम के दौरान अराजक तत्वों द्वारा किए गए पथराव के बाद मऊ में दंगा भड़का था. करीब १३ दिन तक चली सांप्रदायिक हिंसा में अनेक लोग घायल हुए थे.
मुख्तार की फ़ोटो ने खड़ा किया था हंगामा
मुख्तार अंसारी की उस समय मीडिया में एक फोटो छपी थी जिसको लेकर हंगामा मचा था. फोटो में मुख्तार अंसारी एक खुली जीप में हाथ में बंदूक लेकर खड़ा था और अपने लोगों को आगे बढऩे की बात कह रहा था. इस फोटो के छपने और वीडियो वायरल के बाद चर्चा तेज हुई कि मुख्तार खुद दंगा भड़का रहा थे जब कि उसकी दलील थी कि वह खुली जीप में घूमकर लोगों को शांत करा रहा था. बाद में हालांकि जिले की सत्र अदालत ने मामले के कुल २८ गवाहों के मुकर जाने के बाद मुख्तार अंसारी सहित ३1 अन्य आरोपियों को बरी कर दिया.
मऊ में कब कब बढ़ा साम्प्रदायिक तनाव और दंगा
1969 में शहर में कृष्णा टाकीज में टिकट को लेकर दंगा भड़का.
1983 राजरामकपुरा में लक्ष्मी पूजा को लेकर दंगा भड़का.
1984 शाही कटरा राजगद्दी को लेकर हुआ दंगा.
1993 में अयोध्या मामले को लेकर तनाव
2000 में दुर्गापूजा को लेकर दंगा
2005 में शहर के शाही कटरा में भरत मिलाप के दौरान माइक छीनने को लेकर भड़का दंगा. मऊ में दंगे के इतिहास में यह सबसे बड़ा और हिंसक दंगा था जिससे तब की यूपी सरकार हिल गई थी.
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