प्रशांत पांडे
पत्रकारिता के साथ में थोड़ी बहुत खेतीवाड़ी भी कर लेता हूँ. डग्गामार ही सही. एक दिन ब्लॉक के कृषि विभाग के दफ्तर पहुंच गया किसी काम से. खैर कपड़े कपड़े ठीक कर पहने होने के चलते वहां मौजूद लोगों ने बिठाया. बात शुरू हुई. उस में से एक दो लोग पहले से जानते भी थे. सो बोले भाई साब आइये आइये. बात शुरू हुई. वहाँ बैठे एक कृषि कर्मचारी ने पूछा कि आप ऑर्गेनिक खेती तो करते ही होंगे? मैंने कहा कि नहीं करता. लेकिन केमिकल और पेस्टिसाइड का यूज़ कम से कम करता हूँ. कर्मचारी बोला अरे मतलब गोबर की खाद वाद तो डालते ही होंगे न खेतों में. मैंने कहा थोड़ी बहुत डाल देता हूं जब मिल जाती है. कर्मचारी फिर बोला क्या आपका नाम ऑर्गेनिक खेती की लिस्ट में लिख लूँ? मैनें कहा क्या करोगे लिख के जब करता नहीं आर्गेनिक? बोला अरे सरकार से टारगेट आया है. कल तक लिस्ट बनाकर देनी है,ऑर्गेनिक किसानों की. लिखे दे रहा आपका नाम.
अब न चाहते हुए भी उसकी मजबूरी देख मैंने कहा लिख लो. कितने एकड़ लिख दूँ? लिख लो जितना चाहो लिखना. दो एकड़ लिख दूँ मैनें कहा जो ठीक समझो. कर्मचारी ने कागज और लिस्ट निकाली हमारा नाम,गाँव,रकबा लिस्ट में चढ़ा लिया. और हम आर्गेनिक काश्तकार बन गए. बात यहीं खत्म नहीं हुई. अब कर्मचारी साहब ने पूछा कि आपके गांव में भी तो कुछ लोग होंगे ऑर्गेनिक खेती करने वाले. मैंने कहा मेरे गांव में मुझे नहीं याद आता कि कोई ऑर्गेनिक खेती करता हो. वो जानते तक नहीं होंगे आर्गेनिक को. बोले अरे कोई गोबर की खाद वाद तो डालते ही होंगे ना. मैंने कहा गोबर की खाद तो थोड़ी बहुत जो पशु पालते हैं वह डाल ही देते हैं. बोले तो और लोगों के नाम बता दीजिए दो चार लिस्ट भेजनी है शाम तक. ऑफिस से फोन आया है.आर्गेनिक किसानों के नाम और नंबर भेजे जाने हैं.
मैंने गांव के दो तीन और लोगों के नाम गाँव पता बता दिया. कर्मचारी साहब ने वह भी लिख लिया. अब वह (मेरे गाँव वाले भी) भी मेरी तरह कागजों में ऑर्गेनिक कृषक हो चुके थे.थोड़ी देर कुछ इधर-उधर की और लोगों से बातें होने लगी पर बात करते करते मेरा पूरा ध्यान कर्मचारी पर था. कर्मचारी ने अब लिस्ट निकाली. कुछ किसानों को फोन करना शुरू कर दिया.
वो यही कहे जा रहे थे अरे रामप्रसाद बोल रहे हो.....अरे सीताराम बोल रहे... हम कृषि विभाग से बोल रहे हैं. आप एक दो एकड़ पर तो गोबर गोबर डालकर खेती करते ही होगे? किसान उधर से न जाने क्या कह रहा होगा पर कर्मचारी साहब उसको अपनी बात समझाने की कोशिश कर मोटिवेट करने की कोशिश करते रहे. बोले तुम्हारा नाम भी ऑर्गेनिक खेती के लिस्ट में लिखे ले रहे हैं. गोबर गोबर तो डालते ही हो. और इसी तरह एडीओ साहब ने 10-20 किसानों के नाम फोन कर करके ऑर्गेनिक खेती के लिस्ट में बढ़ाकर लिख दिए लिस्ट का क्या हुआ भगवान जाने और कागजों में हम ऑर्गेनिक किसान जरूर होगा यह खुशी की बात थी. आज बजट भी आया है इसी बजट को देखकर ही मुझे यह बात याद आ गई और लिख मारी. खेती किसानी मैं सरकारी ढोंग की कहानियां बहुत से हैं. मैं कभी-कभी आपको इसी तरह सुनाता भी रहूंगा पढ़ाता भी रहूंगा. सरकारी ढोंग हो रहा है. लोकतंत्र ऐसे ही मजबूत हो रहा है. किसान की आय दोगुनी करने के बड़े-बड़े प्लान बन गए हैं. पर जमीन पर किसान की हालत खराब होती जा रही है,आम किसान की जो सिर्फ और सिर्फ खेती पर डिपेंड है.फ़ेसबुक से
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