कबीर संजय
ये जानकर आपको शायद थोड़ी हैरत हो कि गंगा-यमुना के पानी पर चीन-अफ्रीका और थाईलैंड की मछलियों का कब्जा होता जा रहा है. कभी तालाबों में पालने के लिए लाई गई विदेशी मछलियों की संख्या इन नदियों में इस कदर बढ़ती जा रही है कि स्थानीय प्रजाति की मछलियों को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.
पश्चिम बंगाल के बैरकपुर स्थित सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट के हालिया अध्ययनों से पता चलता है कि विदेशी प्रजाति की अधिकता से नदी की जैव विविधता खतरे में पड़ गई है. देश की सबसे प्रमुख नदियों गंगा-यमुना में स्थानीय प्रजाति की मछलियों का जीवन संकट में पड़ गया है. हाल के दिनों में इन नदियों के पानी में विदेशी प्रजाति की मछलियों की तादाद में भारी इजाफा हुआ है. दरअसल, देश के अलग-अलग हिस्सों में ज्यादा मांस वाली मछलियों की विदेशी प्रजातियों के बीज तालाबों में डाले गए थे, लेकिन बाढ़ और बरसात जैसी घटनाओं के बाद इनमें से कई मछलियां नदियों के पानी में चली गईं. एक बार नदी के पानी में आने के बाद उनकी संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. विशेषज्ञों के मुताबिक अफ्रीकन कैट फिश जैसी मछली पहले बांग्लादेश में पाली गई थी. लेकिन, धीरे-धीरे गंगा सागर से होते हुए यह पटना, इलाहाबाद, कानपुर और हरिद्वार तक के पानी में पहुंच गई है. इलाहाबाद में यमुना के संगम के साथ ही यमुना के पानी में भी इनकी पहुंच हो गई.
गंगा-यमुना के पानी में रोहू, कतला, नैन, चेला, बेंदुला, बैकरी, चेन्गमा, सेवरी, बाम, पतया, सिंघी जैसी मछलियां सदियों से पाई जाती रही हैं. इनमें से कुछ मछलियां शाकाहारी होती हैं और नदी की वनस्पतियों को खाकर जिंदा रहती हैं, जबकि कुछ मछलियां मांसाहारी हैं जो नदी की छोटी मछिलयों को खाकर जिंदा रहती हैं. विदेशी मछलियों के आने के साथ ही नदी का पुराना पारिस्थितिक तंत्र (ईको सिस्टम) बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. अफ्रीकन कैट फिश या अफ्रीकन मांगुर जैसी मछली सात-आठ किलो तक की हो सकती है और स्थानीय प्रजाति की मछलियों को खा जाती है. इससे स्थानीय प्रजाति का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है.
विशेषज्ञ बताते हैं कि मूलत: बैंकाक से आई तिलपिया मछली (थाई मांगुर) की रीढ़ की हड्डी काफी मजबूत होती है. इसलिए इसे खाने वाले जीवों के जीवन पर भी संकट आ जाता है. माना जाता है कि चंबल नदी में स्थित घड़ियाल सेंचुरी में तिलपिया मछली खाने के चलते ही कई घड़ियालों की मौत हो चुकी है.
गंगा और यमुना के पानी पर इस मुख्यतया अफ्रीकन कैट फिश, बैंकाक की तिलपिया, चीन की चाईनीज कार्प, हांग कांग की ग्रास कार्प, जापान की सिल्वर कार्प, इंग्लैंड की कॉमन कार्प जैसी मछलियों का कब्जा हो चुका है. नदी के पारिस्थितिक तंत्र में स्थानीय प्रजाति की मछलियों की महत्वपूर्व भूमिका होती है. ये नदी की सफाई का काम करती हैं. जबकि, विदेशी प्रजातियां स्थानीय मछलियों की संख्या को समाप्त कर रही हैं. इससे नदी की सेहत भी खतरे में पड़ती है.
अभी हाल ही में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने थाई मांगुर समेत विदेशी मछलियों को पूरी तरह से बाहर करने के निर्देश दिए हैं. हालांकि, हमारे यहां इस तरह के निर्देशों का पहले क्या हश्र होता रहा है, इसे देखकर इस मामले में भी क्या होने जा रहा इसे समझा जा सकता है. अपनी जैवविविधता को ऐसे ही नष्ट होते हुए देखिए !!! (फोटो भारत में प्रतिबंधित हो चुकी थाई मांगुर की है और इंटरनेट से साभार ली गई है)
साभार जंगलकथा
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments