डा रवि यादव
यूपी विधान सभा चुनाव 2022 के परिणाम आ चुके है. भाजपा ने अप्रत्याशित सफलता प्राप्त कर दुबारा प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का क़द भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राजनीति में बढ़ना निश्चित है. लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनी हुई सरकार को क़ानून व्यवस्था के लिए बुलडोज़र चलाने का अधिकार नहीं होता ,न्याय देने या सज़ा देने का अधिकार संविधान में न्यायपालिका को दिया गया है मगर योगी जी और भाजपा बुलडोज़र को जनता में जिस तरह एक समुदाय विशेष के साथ कड़ाई से निपटने , क़ानून व्यवस्था सही करने और मुख्यमंत्री की कड़क छवि के प्रतीक के रूप में प्रचारित करने में कामयाब हुई तो उसके लिए हमारे समाज का जन्म आधारित वर्गीय श्रेष्ठता का ढाँचा मददगार है जो लोकतंत्र , समानता ,न्याय ,बंधुत्व और मानवाधिकार आधारित कभी था ही नहीं लोगों को असमानता और अन्याय आधारित जातीय व्यवस्था में जीने की आदत है अतः समानता, मानवाधिकार, न्याय के प्रति जिस चेतना की आवश्यकता है ,सवर्ण उसके विरोधी है तो दलितों पिछड़ों में उस चेतना का अभाव है. समाज के उच्चवर्ग द्वारा अपनाये जाते रहे धार्मिक क्रियाकलाप व प्रतीकों से दलितों वंचितो को बलपूर्वक दूर रखा गया है जिसके कारण उनमें हिंदुत्व के इन प्रतीकों के प्रति आकर्षण है. जब उन्हें हिंदू के रूप मान्यता मिलने का आश्वासन /उम्मीद जगती है जिसकी उम्मीद में उनकी पिछली कई पीढ़िया मर चुकी है तो वह रोज़गार सहित तमाम ज़रूरी मुद्दों को मुल्तवी रख सहर्ष हिंदू बनना चुन लेता है भले इस हिंदुत्व में उसे काल्पनिक दुश्मन मुसलमान को गाली देने के अलावा कोई अन्य अधिकार न मिले. लेकिन अनंतकाल तक वास्तविक प्रतिनिधित्व दिए बिना उन्हें साथ रखना शायद संभव न हो. हिंदी पट्टी में नेतृत्व विहीन ब्राह्मण विकल्पहीनता की त्रासदी को कब तक स्वीकार करेगा ?और अपने अलावा देश की त्रासदी के बोझ को कब तक सह सकेगा? इस पर भी योगी जी का भविष्य निर्भर करेगा
मीडिया ,मनी और समाज का यह ढाँचा भाजपा की ताक़त है तो वैचारिक अस्पष्टता से भ्रमित संघर्ष से आँख चुराता विपक्ष भी कम ज़िम्मेदार नहीं है. इस चुनाव में सफलता का जो सूत्र है वही अगले चुनाव में काम करें यह ज़रूरी नहीं. सपा गठबंधन को बहुमत के लिए जिन 77 सीटों की आवश्यकता थी उन्हें जीतने के लिए उसे पाँच लाख अतिरिक्त वोटों की आवश्यकता थी.
अतः उम्मीद की जानी चाहिए अपनी अगली पारी में योगी जी रोजगार आर्थिक विकास और जन सरोकारों के लिए काम कर भाजपा और देश के भविष्य के बड़े नेता बनने के लिए सकारात्मक राजनीति करेंगे.अखिलेश यादव इस चुनाव में एक परिपक्व , मुद्दों आधारित सकारात्मक राजनीति करने वाले एक मज़बूत नेता बनकर उभरे है किंतु समाजवादी पार्टी अगर अपेक्षित परिणाम प्राप्त नही कर सकी तो इसके लिए वे चुनाव आयोग , मीडिया , भाजपा , बीएसपी या संप्रदायिकता को ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते उन्हें अपने पिता मुलायम सिंह यादव से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है.
संसदीय व्यवस्थाओं में समाजवाद सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था है जिसमें समाज और शासन व्यवस्था की सभी बुराइयों का समाधान मौजूद है तब अखिलेश जी को मंदिर मस्जिद जाने या परशुराम के फरसे की क्यों ज़रूरत पढ़ती है ? ब्राह्मण विरोध किसी हालत में स्वीकार्य नहीं , न समाजवाद के अनुरूप होगा किंतु ब्राह्मणवाद के विरोध के बिना समाजवाद कैसे आयेगा? अखिलेश जी को यदि सफल होना है या प्रदेश को साम्प्रदायिक दलदल से बाहर निकालना है तो समाजवाद की वैचारिक धार को मज़बूत करना ही होगा.
मुस्लिम विरोधी मानसिकता पर बचने की नहीं प्रहार करने की ज़रूरत है .पिछड़ों ,दलितों , वंचित वर्ग के छीने जा रहे लोकतांत्रिक अधिकारो पर अधिक स्पष्टता से खुलकर सामने आना होगा. मुलायम सिंह जी को धरतीपुत्र और नेताजी बनाया है उनके सड़क के संघर्ष ने लेकिन आप सड़क के संघर्ष से अब तक बचते हुए ही दिखाई देते है . यदि यह मान भी लिया जाए कि आपकी “ट्विटर लीडर “ की छवि आपके विरोधी बनाते है तो भी उससे बाहर निकलने का काम तो आपको ही करना होगा. यदि अखिलेश शाहजहापुर, हाथरस , उन्नाव, प्रतापगढ़ , इलाहाबाद पीड़ितों से मिलने गए होते , दलित परिवार पर आज़मगढ़ में हुए पुलिस उत्पीड़न पर भी पीड़ित से मिलने गए होते और क़ानून व्यवस्था और कुशासन को आक्रामक अन्दाज़ में उठाया होता तो भाजपा क़ानून व्यवस्था के बेहतर बनाने का झूठा नरेटिव बनाने में कामयाब नहीं होती और तब चुनाव परिणाम कुछ और हो सकता था.
सुनील सिंह साजन , आनंद भदौरिया , उदयवीर सिंह और नरेश उत्तम पटेल जैसे काग़ज़ी नेताओ की कोटरी के बारे में कुछ सामान्य समर्थकों की राय लेकर उनके दायित्वों की समीक्षा नहीं करना नुक़सानदायक होगा. संगठन को गाँव गाँव और बूथ तक मज़बूत किए बिना आप भाजपा के दुस्प्रचार का मुक़ाबला नहीं कर सकते. बूथ स्तर के कार्यकर्ता होते तो हर बूथ पर सपा समर्थकों के नाम वोटिंग लिस्ट से नहीं काटे गए होते . सरकार बनाने के लिए जिन 77 अतिरिक्त सीटों को जीतना आवश्यक था उनको जीतने के लिए सिर्फ़ 5 लाख अतिरिक्त वोट की अवध्यकता थी जबकि इससे कई गुना अधिक सपा समर्थकों के नाम वोटिंग लिस्ट से ग़ायब थे
सड़क पर संघर्ष और जनता से निरंतर संवाद ही आपका और उत्तरप्रदेश का भी भविष्य निर्धारित करेगा.
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