प्रशांत के चंगुल से बची कांग्रेस

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प्रशांत के चंगुल से बची कांग्रेस

हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली! कांग्रेस पर कब्जा करके उसे पूरी तरह तबाह करने की प्रशांत किशोर की तीसरी कोशिश भी नाकाम हो गई. सोनिया गांधी और राहुल गांधी तो पीके के जादू का शिकार हो ही गए थे लेकिन दिग्विजय सिंह, भूपेश बघेल, अशोक गहलौत और मुकुल वासनिक समेत कई सीनियर कांग्रेस लीडरान ने प्रशांत की साजिश को पूरी तरह नाकाम कर दिया. खबर है कि प्रशांत कांग्रेस में सदर समेत कोई ऐसा ओहदा चाहते थे कि उनकी जवाबदेही सीधे सिर्फ सोनिया गांधी के लिए ही रहे. उनकी नजर पार्टी के सदर के ओहदे पर लगी थी. इसी लिए उन्होने मश्विरा दिया था कि सोनिया गांधी के परिवार से बाहर का कोई लीडर पार्टी का अगला सदर बनना चाहिए. उनके दिए गए डिमास्ट्रेशन के बाद सोनिया गांधी ने पार्टी के सीनियर लीडरान की ‘इम्पावर्ड एक्शन ग्रुप-2024’ नाम की कमेटी बना दी और प्रशांत किशोर से कहा गया कि वह उसी ग्रुप में शामिल हो जाएं यह पेशकश उन्हें मंजूर नहीं हुई क्योंकि वह तो फ्री हैण्ड ओहदा लेकर नरेन्द्र मोदी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का मंसूबा पूरा करने की साजिश के तहत तीसरी बार कांग्रेस के दरवाजे आए थे. सोनिया गांधी हों, राहुल गांधी हों या प्रियंका गांधी वाड्रा तीनों किसी भी कीमत पर खुदको तब्दील करने के लिए तैयार नहीं है. इसीलिए प्रशांत किशोर के सी वेणुगोपाल, मधुसूदन मिस्त्री, नवजीत सिंह सिद्धू और सिद्धारमैय्या जैसों के जरिए पार्टी की खोई हुई सियासत वापस पाने की कोशिशें करते रहते हैं. यह तीनों इतना समझने के लिए तैयार नहीं हैं कि अपनी पार्टी के सीनियर लीडरान पर एतबार न करने और पार्टी वर्कर्स और लीडरान के लिए पूरी तरह इनके दरवाजे बंद हो जाने की दो ही अहम वजहें हैं जिनके चलते कांग्रेस खत्म हो रही है. इन तीनों को आरएसएस जेहनियत वाले कुछ लोग गुमराह करते रहते हैं. उन्हीं लोगों से यह तीनों मुलाकातें भी करते रहते हैं. प्रशांत किशोर भी उन्हीं में शामिल हैं कोई सीनियर लीडर सही मश्विरा दे दे तो इन तीनों को यह कह कर बहका दिया जाता है कि मश्विरा देने वाले आपके मुखालिफ हैं.

प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में शामिल होने से इंकार करने के साथ-साथ यह कह कर पार्टी और पार्टी लीडरशिप की तौहीन कर दी कि उन्होने कांग्रेस की पेशकश को ‘ठुकरा’ दिया. लफ्ज ठुकरा दिया ही कांग्रेस और सोनिया गांधी की तौहीन है इसे समझने की सख्त जरूरत है. प्रशांत एक इंतेहाई चालाक किस्म के इवेंट मैनेजर और बहुत बडी़ ख्वाहिशात (ओवर इम्बीशस) वाले शख्स हैं. वह सियासतदानों को बेवकूफ बनाकर सैकड़ों करोड़ रूपए कमाते हैं. उसमें से लाखों रूपए देश की मीडिया के कुछ चुनिंदा लोगों पर खर्च करते हैं. उसी मीडिया गरोह के जरिए वह अपनी ऐसी तस्वीर बनवाते हैं जैसे वह जिस पार्टी को जिस प्रदेश में चाहें एलक्शन जितवा सकते हैं. अगर वह इतने ही काबिल हैं तो अपने बिहार में अपनी पार्टी बनाकर खुद ही सत्ता पर कब्जा क्यों नहीं कर लेते. गुजिश्ता बरस वह तमिलनाडु असम्बली एलक्शन के दौरान डीएमके के एम के स्टालिन को एलक्शन जितवाने पहुच गए थे यह अलग बात है कि उन्हें न तो तमिल जबान आती है और न वह वहां के वोटर्स की बात समझ सकते हैं.

कांग्रेस पर अंदर से हमला करके उसे खत्म करने की प्रशांत किशोर की यह तीसरी कोशिश थी. 2016 में राहुल गांधी उनके जादू में फंसे और 2017 का उत्तर प्रदेश असम्बली का एलक्शन जितवाने का ठेका दे दिया. कहा तो यहां तक जाता है कि उस वक्त राहुल गांधी ने इस ठेके के एवज में प्रशांत की कम्पनी को पांच सौ करोड़ रूपए दिए थे. हकीकत क्या है यह वही दोनों जानते होंगे. प्रशांत ने लखनऊ में अपनी टीम के साथ लखनऊ पहुंच कर पूरी कांग्रेस पर कब्जा कर लिया प्रदेश कांग्रेस के बड़े-बड़े लीडरान के साथ उनका रवैय्या पार्टी के मालिक जैसा था. टिकटों का फैसला भी उनकी रिपोर्ट पर होने लगा उनकी टीम के कुछ दलाल किस्म के लोगों ने टिकट दिलाने के नाम पर बडी तादाद में उम्मीदवारों से मोटी वसूली भी कर ली. अपने पालतू मीडिया के जरिए उन्होने ऐसा माहौल बना दिया कि शायद उत्तरप्रदेश कांग्रेस के फैसले अकेले प्रशांत किशोर ही करते हैं. उनके फैसलों में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा तक दखल देने की हैसियत नहीं रखते. एलक्शन मुहिम शुरू होते ही इस चालाक शख्स को पता चल गया कि यूपी में उसका भाण्डा फूटने वाला है तो उन्होने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का चुनावी समझौता कराकर दोनों को तबाह कर दिया.

कांग्रेस में घुसने की दूसरी कोशिश उन्होने 2021 में उस वक्त की जब कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल ने पार्टी में शामिल होने और जिग्नेश मेवाणी ने कांग्रेस के साथ मिलकर काम करने का फैसला किया था. उस वक्त भी कांग्रेस के कुछ होशमंद और मुल्क की सियासत से वाकफियत रखने वाले लीडरान ने उनका रास्ता रोक दिया था. वह भाग कर ममता बनर्जी के पास पहुच गए. ममता बनर्जी यह चाहती थीं कि कांग्रेस की कयादत में ही देश में बीजेपी मुखालिफ मोर्चा बनाया जाए. प्रशांत ने उन्हें कांग्रेस के खिलाफ यह समझा कर भडकाया कि बीजेपी मुखालिफ मोर्चा की लीडर वह खुद बन सकती है. ममता उनके झांसे में फंस गई और सोनिया गांधी तक से अपने रिश्ते खराब कर लिए. ममता जब महाराष्ट्र के दौरे पर गई तो सीनियर लीडर शरद पवार ने उन्हें समझाया कि कांग्रेस के अलावा किसी भी इलाकाई पार्टी की कयादत में बीजेपी के खिलाफ कोई मुअस्सर (प्रभावशाली) मोर्चा नहीं बन सकता. तभी ममता के कांग्रेस मुखालिफ तेवर ढीले पड़े. उस वक्त प्रशांत ने राहुल गांधी के खिलाफ भी काफी कुछ कहा था.

प्रशांत किशोर की कांग्रेस में घुसने की यह तीसरी कोशिश थी वह भी इतने असरदार तरीके से कि सोनिया गांधी फिर उनके झांसे में आ गई और एक हफ्ते के अंदर सोनिया गांधी ने उनके साथ कुल मिलाकर तकरीबन पन्द्रह घंटे की मीटिंगें कर डाली. इस बार प्रशांत इस गलतफहमी में पड़ गए कि अब तो कांग्रेस में सिर्फ उन्हीं की चलेगी उन्होने इतना बड़ा मतालबा अपने लिए कर डाला कि सोनिया गांधी ने भी हाथ खीचं लिए. अच्छा ही हुआ अगर प्रशांत को 2024 के लोक सभा एलक्शन के लिए पार्टी इस्तेमाल कर लेती तो 2024 में पार्टी की लोक सभा में मेम्बरान की तादाद शायद बावन से कम होकर तीस-बत्तीस ही रह जाती. इस तरह प्रशांत अपने पुराने आका नरेन्द्र मोदी की ख्वाहिश पूरी कर देते.

मोटा पैसा कमा कर अपना मकसद पूरा करके निकल लेने का प्रशांत किशोर का सिलसिला 2014 से ही जारी है सियासतदां भी इतने कम अक्ल कि कोई न कोई उनके जाल में फंस ही जाता है. उनका ताजा शिकार तेलंगाना के वजीर-ए-आला के चन्द्रशेखर राव बने हैं. वह चन्द्रशेखर राव जो अपने दमपर पूरी अक्सरियत के साथ एलक्शन जीत कर सरकार में हैं वह तीसरा एलक्शन प्रशांत के दम पर लड़ने जा रहे हैं. यह तो बेवकूफी की इंतेहा है. इससे पहले प्रशांत बिहार में नितीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड, बंगाल में ममता की तृणमूल कांग्रेस, आंध्रप्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की सीएसआर कांग्रेस, तमिलनाडु में एमके स्टालिन की डीएमके और सबसे बड़े 2014 में नरेन्द्र मोदी को जितवाने का दावा कर चुके हैं. दरअस्ल यही उनकी टीआरपी है जो वह अपने पालतू मीडिया के एक बड़े गरोह से बनवाते रहते है.

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