चंचल
आज ही के दिन 29. मई 1987 को चौधरी चरण सिंह ने इस दुनिया से विदा ले लिया . चौधरी साहब के लिए यह बताना ग़ैर ज़रूरी है , क़ि वे कुछ दिनो के लिए प्रधान मंत्री थे , मोरार जी भाई की सरकार में गृहमंत्री थे , या इत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे . और उत्तर प्रदेश में ही ' सफल ' राजस्व मंत्री रहे . उनकी खूबी रही क़ि वे जहां भी रहे , ' देश ' की पहचान लिए रहे , वह पहचान थी किसान की . इस खूबी का कोई दूसरा प्रधान मंत्री नही बना .
चौधरी साहब ज़िद्दी थे , आर्य समाजी थे . हमसे बहुत चिढ़ते थे . उसकी वजह एक छोटी सी घटना थी . हुआ यूँ कि 1967 में जब डॉक्टर लोहिया ने ग़ैर कांग्रेस वाद का नारा दिया तो कांग्रेस दरक गयी . राजनीति में “ लालच “ फिसलन की जड़ है . चौधरी साहब कांग्रेस से बाहर आ गये , मुख्यमंत्री बने . एक साल के अंदर ही डॉक्टर लोहिया का भ्रम टूट गया , उन्हें सत्ता परिवर्तन की जगह चेहरा परिवर्तन भर मिला बाक़ी सब वही . चुनांचे सरकार टूट गयी और मध्यावधि चुनाव हुआ , चरण सिंह की पार्टी को अन्य दलों की अपेक्षा बड़ी सफलता मिली . लेकिन बहुमत के लिए उसी कांग्रेस के पास जाना पड़ा जिसे छोड़ कर बाहर आए थे . 70/71में चौधरी चरण दूसरी बार मुख्यमंत्री बने . बस यहीं से हमारी क़िस्मत उठा पटक में उलझी . हुआ यूँ कि चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश में छात्र संघों पर प्रतिबंध लगा दिया . छात्र आंदोलित हो गये . उन दिनो हम काशी विद्यापीठ के छात्र थे . हमारे लोकल गार्जियन थे, जगदंबा प्रसाद शास्त्री . लोंगो का कहना था वे काशी विद्यापीठ से भी सीनियर थे . छात्र संघ अध्यक्ष होने के लिए पढ़ाई करते रहे , हारते रहे , पढ़ते रहे . एक भला उन्होंने सुझाव दिया -
- देखो तुम्हारे नाम वारंट है , हत्या का प्रयाश , आगज़नी , सरकारी काम में रुकावट वग़ैरह . यानी ज़िंदगी बराबाद . कांग्रेस होती तो मुक़दमे वापस भी हो जाते , ये चौधरी बहुत ज़िद्दी है . सुना नही है जन उत्तर प्रदेश के लेखपालों ने आंदोलन किया तो एक कलम से सब को बर्खास्त कर दिया , लालाओं का ऐसा मुंडन किया क़ि पूछो मत .
- तो क्या करूँ ?
- चौधरी के सामने आन दी स्पाट गिरफ़्तारी दो , लेकिन छोटी मोटी हरकत मत करना नही तो पुलिस यूँ ही छोड़ देगी , कुछ बड़ा जुर्म कर देना जिससे दो चार दिन जेल में रह लो और इस हत्या से बच जाओ . (उन दिनो पुलिस मनमानी धारा लगाती थी , उसे मालूम रहता था , आज नही तो कल सरकार मुक़दमा वापस लेगी ही , लगा दो हत्या , वग़ैरह )
लोकल गार्जियन का सलाह लेकर बंदा लगा खोजने चौधरी साहब को . और चौधरी साहब मिल गये अलहबार के पहले पन्ने पर - “ अमुक तारीख़ को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का जौनपुर आगमन “ .
चौधरी साहब सायं सात बजे जौनपुर के टाउन हाल मैदान में जनता को संबोधित करेंगे . पुलिस हमारी तलाश में . चप्पे चप्पे पर नज़र . किसी तरह गोमती पार कर टाउनहाल पहुँचा ( हमे तैरना नही आता था , रोम के बाद जौनपुर अलेला शहर है जो गोमती नदी के दोनो किनारे पर बसा है , इस पार से उसपार जाने के लिए मात्र एक पुल था , शाही पुल . जौनपुर का नामी बहादुर रतिराम हमे अपने कंधे पर बिठा कर नदी पार कराया )
हम गेट तक फुँचे ही थे क़ि मुख्यमंत्री की गाड़ी गेट के सामने आकर खड़ी हो गयी . ज़िंदाबाद , धक्कामुक्की के बीच हम भी ज़िंदाबाद बोलते हुए चौधरी के साथ लग लिए . ऊपर मंच पर ज्यों मुख्यमंत्री माइक पकड़े , हम कूद गये मंच पर और चौधरी साहब के हाथ से माइक खींच लिया और लगा चीखने - जनतंत्र के हत्यारे , इतने पुलिस कप्तान ने दौड़ कर हमे धक्का दे दिया , हम लड़खड़ाए तो मुख्यमंत्री भी लड़खड़ा गये . हम चले गये जेल में . और हमारे जुर्म के क़िस्से अवाम में , अलग अलग चासनी में , अलग अलग अन्दाज़ में - जूता मारा , मंच पर चढ़ कर . धक्का दे दिया , हिम्मत तो देखो . लम्बा भुगतेगा . चौधरी चरण कम है क्या ? मुख्यमंत्री है . वग़ैरह वग़ैरह . दूसरे दिन “आज” अख़बार में तीन कालम में हम छपे मिले . कांग्रेस समर्थक पत्रकार चंद्रेश मिश्रा को यह खबर काम की लगी और हम उछाल दिए गये . लम्बी जेल मिली . शुक्र था कि जल्द हाई चरण सिंह की सरकार गिर गयी और पंडित कमलापती त्रिपाठी मुख्यमंत्री बने और मुक़दमे वापस .
वक्त बदला . राजनीति बदली . समाजवादी चरण सिंह के साथ लोकदल हो गये और हमे भी जाना पड़ा . टिकट का दावेदार हम भी बने , उसी पार्टी के जो दूसरे दावेदार थे , उनकी याद दास्त बहुत मज़बूत थी , उन्होंने चौधरी साहब को एन वक्त पर समझा दिया - बाबू जी ! यह वही चंचल है जिसने आपको जौनपुर की भरी सभा में . और हम भारी सभा में कटी पतंग हो गये . भाई शरद यादव ने बहुत कोशिश की लेकिन - जो राम रची राखा .
अंत तक चौधरी साहब हमसे बिदके रहे .
चौधरी साहब का हमसे बिदकना उस दिन निहायत छोटा हो गया जिस दिन चौधरी साहब , जे पीं , चंद्र्शेखर , मधुलिमए , बीजू पयनायक वहैरह के मना करनेके बावजूद श्रीमती इंदिरागांधी को जेल भिजवा ही दिया .
चौधरी साहब ज़िद्दी थे , बाज दफे ज़िद बहुत नुक़सानदेह हो जाती है , यह सबक़ पढ़ा कर गये हैं चौधरी साहब . यह अलग की शक्सियत थे .
प्रणाम चौधरी साहब
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments