चंचल
भारत के जंगे आज़ादी में 'तिरंगा' और चरखा कांग्रेस का पोस्टर था . मौन प्रचारक था और प्रखर संवादी था . चरखा चलाता हुआ आदमी या औरत कांग्रेस माँ लिया जाता था . तिरंगा झंडा जिस कंधे पर टिक जाय वह सुराजी हो जाता था . और ये दोनो - चरखा और तिरंगा , अपने इतिहास का पहला हर्फ़ महात्मा गांधी के अथक प्रयास से चलता है . आज़ादी के मुहाने तक पहुँचते - पहुँचते देश की संविधान सभा ने डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की सदारत में बनी दस सदस्यीय समिति ने राष्ट्र्र्य ध्वज घोषित कर दिया . इस तिरंगे के निर्माता आंध्र प्रदेश के पिंगली वेकय्या ने बापू के सुझाव को मानते हुए , तिरंगे की बीच सफ़ेद पट्टी पर अशोक चक्र लगा दिया और यह 1929 लाहौर कांग्रेस जो रवि नदी के तट पर आहूत थी , कांग्रेस सदर जवाहर लाल नेहरु ने फहरा दिया .
लेकिन यह झंडा कब कांग्रेस के आँचल से निकल कर लोक मन में कूद गया , इसका कोई व्योरा नही मिलता , क्यों कि यह केवल तीन रंग का तिरंगा भर नही रहा , जिसके बीच में अशोक चक्र घूमता है . इसके साथ एक गीत भी आ जुड़ा था , जिसने बेज़ुबानों को ज़ुबाम दे दिया - इस गीत के जोश औ जज़्बे ने झंडे को वाक़ई आसमान का सफ़र करा दिया . हम दर्जा तीन से इस झंडे को लेकर पगडंडियों पर चलते रहे , इंक़लाब बोलते रहे और गाते रहे - विजयी विश्व तिरंगा प्यारा , झंडा ऊँचा रहे हमारा . यह उस जमाने की बात है जब हमारे मदरसों में कुल एक ही झंडा हुआ करता था जो मदरसे के साथ खड़ा महुआ के पेड़ पर , सबसे ऊँचाई पे बांध दिया जाता , बाक़ी हम बच्चे हफ़्तों पहले से कापी का पन्ना फाड़ कर रंगते , बबूल की सिंघड़ी से निकले वाले लासे से मोड़ कर जोड़ते , जिसमें बांस की हरि कइन चली जाय , और हमारा झंडा हबीब से ज़्यादा ऊँचायी पर रहे .
हम बच्चों को इतना तक नही पढ़ाया गया था , क़ि इस गीत को किसने लिखा , इसे सबसे पहले गाया किसने ?
बच्चों को बताना चाहिए . तिरंगा झंडा कांग्रेस से स्वीकार कर लिया था , अब उसके लिए एक झंडा गीत लिखना था . सच में पलट के पीछे देखने पर अपने पर गर्व होता है कि कितनी मेहनत और मसक्कत के बाद आज़ादी मिली है . महान क्रांतिकारी अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी जिनकी मृत्यु पर गांधी जी ने कहा था , “ हम गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह मारना पसंद करेंगे “ होनी देखिए - वही हुआ . धार्मिक उन्माद में दोनो ने शहादत दी . दंगे की भीषण ज्वाला में जलता कानपुर , बिल्कुल शांत हो गया था . जनता ने जब सुना है क़ि किसी कायर ने गणेश शंकर विद्यार्थी को ख़ंजर मार कर सड़क पर सुला दिया है . उस रात कानपुर में चूल्हे नही जले थे और कानपुर ने संकल्प लिया क़ि अब किसी भी क़ीमत पर कानपुर में दंगा नही होगा , और आज तक कानपुर उस पर क़ायम है . महात्मा गांधी में इन्ही गणेश शंकर विद्यार्थी के ज़िम्मे यह काम लगाया था , तिरंगा गीत लिखवाने का .
कानपुर नरवल निवासी श्यामलाल गुप्त पार्षद ने यह गीत लिखाहै . कैसे लिखा उन्होंने , इसका दिलचस्प इतिहास है . इसी फ़ेसबुक पर पंडित जी (श्री शम्भु नाथ शुक्ल ) ने विस्तार से लिखा है . गणेश शंकर विद्यार्थी ने जब इस गीत को बापू को दिखाया तो उन्हें पसंद आया , लेकिन उन्होंने इसे थोड़ा छोटा करने का अनुरोध किया और इस तरह गीत “कांग्रेस के तिरंगे” के साथ जुड़ गया .
इस गीत स्वर्णिम हिस्सा हरिपुर कांग्रेस में है . नेता जी सुभाष चंद बोस कांग्रेस सदर हैं , तिरंगा फहराने के बाद उन्होंने यह गीत गाया . आगे आगे नेता जी पीछे पाँच हज़ार की कांग्रेस भीड़ इसे दुहरा रही थी . इस तरह नेताजी सुभाष चंद बोस ने ध्वज गीत को कांग्रेस के सुपुर्द कर दिया और कांग्रेस से निकल कर यह गीत लोक मे चल रहा है . 15.अगस्त और 26 जनवरी विजयी विश्व तिरंगा प्यारा -
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