बोस और नेहरु के बीच का रिश्ता

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बोस और नेहरु के बीच का रिश्ता

चंचल 

आज यानी 18. अगस्त 1945को नेताजी सुभाष  चंद बोस के , एक हवाई हादसे में हुयी मृत्यु की तारीख़ है .     किसी ने आकर बापू को खबर दी क़ि आज नेता  जी का प्लेन क्रैश हो  गया है . अमूमन न विचलित होनेवाले बापू , उस खबर से इस कदर विचलित दिखेक़ि जैसे कोई विक्षिप्त हो . जवाहर से पूछो क्या हुआ है ? मौलाना को बुलाओ ! यह सब कैसे हुआ ? उस दिन पत्रकार लुइफ़िशर , जो बाद में बापू के जीवनीकार के रूप में मशहूर हुए , गांधी जी से मिलने आए थे . लूई फ़िशर का पत्रकार जग गया और उन्होंने बापू को उकसाया - सुभास चंद बोस आपके विचार से सहमत नही थे , उनका आचरण आपके विपरीत था , आप इतने बेचैन क्यों है ? 

बापू ने बड़े दुखी मन से कहा था - उस जैसा देशभक्त कोई दूसरा नही है . हम दोनो के बीच साध्य एक ही रहा , आज़ादी , लेकिन साधन अलग  रहे . इसके बावजूद हमने सुभास से  कहा है - अगर वह हिटलर और तोजो की मदद से अंग्रेजों को हटा देते हैं हम सबसे हम पहले सुभास चंद बोस का स्वागत करूँगा . 

     कांग्रेस स्तब्ध थी , पंडित नेहरु का सबसे  अच्छा दोस्त उन्हें छोड़ कर जा  रहा है . सुभास चंद बोस और पंडित जवाहर लाल नेहरु के बीच का रिश्ता समझने के लिए , सुभास चंद बोस का लिखा एक ख़त काफ़ी है . 

    16 अगस्त 1947 को लाल क़िले के प्राचीर से जब पंडित नेहरु राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे , तब उनका प्रिय दोस्त सुभास चंद बोस भरपूर ढंग से नेहरु के साथ  रहा - लाल क़िले पर तिरंगा फहराना , सुभास चंद बोस का ऐलान था , पंडित नेहरु उसे पूरा कर रहे थे . जय हिंद   सुभास चंद बोस का नारा था . अपने भाषण के अंत में पंडित नेहरु ने उसी जय हिंद को जनमन में उतार दिया और आज तक यह परम्परा जीवित है . 

     सादर नमन नेता जी को 

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