बिलक़िस प्रकरण - असफल सरकार और असभ्य समाज की निशानी !

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बिलक़िस प्रकरण - असफल सरकार और असभ्य समाज की निशानी !

डा रवि यादव

आदरणीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने लालक़िले के प्राचीर से 76 वें स्वतंत्रता दिवस समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि “ हमारे आचरण में विक्रति आ गयी हैऔर हम कभी कभी महिलाओं का अपमान करते है. क्या हम अपने व्यवहार और मूल्यों में इससे छुटकारा पाने का संकल्प ले सकते है.” तो उम्मीद की जानी चाहिए थी कि अब तक जो भी हुआ हो मगर आगे महिलाओ के शोषण और असम्मान के मामलों में कमी आयेगी. किंतु यह उम्मीद एक दिन भी न रह सकी जब प्रधान मंत्री के गृह राज्य गुजरात की प्रधान मंत्री की अपनी पार्टी की सरकार ने 2002 के गुजरात दंगो के समय बिलक़िस बानो के सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की नृशंस हत्या के लिए आजीवन सज़ा काट रहे 11 अपराधियों  को माफ़ी देकर रिहा कर दिया. स्वतन्त्रता दिवस पर माफ़ी देकर छोड़े जाने वाले क़ैदियों पर विचार के लिए बने पैनल के सदस्य और गोधरा से भाजपा विधायक सीके राऊल का वीडियो शोसल मीडिया में वायरल है जिसमें माननीय विधायक जी बलात्कारियों को  ब्रह्मतेज़ युक्त, सनातन ,सभ्य , संस्कारी 11 अवतार सिद्ध कर जीवन धन्य करने का तुच्छ प्रयास करते सुनाई देते है. विधायक जी ने सपथ भले ही संविधान की ली है मगर मनुस्मृति से उनका अनुराग बलात्कारियों के ब्राह्मण होने के कारण उन्हें संस्कारी मानने पर मजबूर कर रहा है.

2002 गुजरात दंगो के दौरान बलात्कारियों / हत्यारों ने पाँच माह की गर्भवती बिलक़िस के साथ सामूहिक बलात्कार किया था बिलक़िस की 3 साल की बच्ची की दुष्कर्म  व हत्या की थी व परिवार के सात लोगों की भी हत्या की थी . बिलक़िस को अपने पर हुए अत्याचार के लिए जो संघर्ष करना पढ़ा उसे शब्दों में व्यक्त करना किसी के लिए भी संभव नहीं. पुलिस ने रिपोर्ट नहीं लिखी , राज्य सरकार के अधीन कार्यरत डाक्टरों ने बलात्कार होने की पुष्टि नहीं की अर्थात शरीर का उत्पीड़न तो एक दिन हुआ मगर आत्मा का और मानवीय गरिमा का उत्पीड़न लगातार होता रहा. कोर्ट के हस्तक्षेप और सीबीआई जाँच से बड़े संघर्ष के बाद उसे न्याय मिला मगर जिस विचार व्यवस्था से बिलक़िस का संघर्ष था वह विचार -व्यवस्था लगातार मज़बूत हुई है और इसलिए इतने जघन्य अपराध के ज़िम्मेदार अपराधियों को न केवल रिहा किया गया है , उनको मिठाइयाँ खिलाई जा रही है मालाएँ पहना कर अपराधियों के चरण स्पर्श कर  उन्हें महिमामंडित कर वीडियो शोसल मीडिया पर डालें गए है अर्थात इस तरह के कुकृत्यों के लिए एक ख़ास विचारधारा द्वारा अपने लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है और असहमत विचार के लोगों के दिलो में डर बिठाया जा रहा है . पार्टी विद द डिफ़रेंस और उसकी विचारधारा देश की अकेली पार्टी और विचारधारा है जो हत्यारों और बलात्कारियों के समर्थन में पहले भी अपने बड़े संगठन पदाधिकारियों के नेतृत्व में सड़क पर उतर कर रैलियाँ प्रदर्शन , घर घर सम्पर्क और चंदा इकट्ठा करती रही है. कठुआ गैंगरेप में पार्टी पदाधिकारी व मंत्री सड़क पर उतर कर बलात्कारी का समर्थन कर चुके है. योगी आदित्यनाथ की सरकार चिन्मयानन्द पर लगे बलात्कार के आरोप वापस ले चुकी है, तो हाथरस में अपराधियों के पक्ष में क्षेत्रीय विधायक, सांसद ही नहीं एडीजी को उतारा जा चुका है. उन्नाव से विधायक कुलदीप सेंगर एक साल से अधिक समय तक सरकार के संरक्षण में पीडिता के परिवार पर क़हर ढाता रहा , राजसमंद राजस्थान में हत्या करते लाइव वीडियो बनाकर शोसल मीडिया पर डालने वाले शम्भुनाथ के पक्ष में प्रदर्शन व बुलंदशहर हिंसा और इंस्पेक्टर सुबोध के हत्यरोपी योगेश राज को ज़मानत पर रिहा होने पर फूलमलाओं से स्वागत की अगली कड़ी के रूप में बिलक़िस बानो केस के अपराधियों के स्वागत को देखा जा सकता है.

प्रधान मंत्री जी ने अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है . जबकि यह प्रकरण न केवल महिलाओं के उत्पीड़न को प्रोत्साहित करने वाला है बल्कि क़ानून के शासन और सभ्य समाज के रूप में हमारी पहचान पर प्रश्नचिन्ह है 

.ग़ालिब ने इन हालातों पर लिखा था -

काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब ‘

शर्म  तुम  को  मगर  नहीं  आती

स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी जी भी अगर होते तो सरकार से फ़ैसला पलटने को भले न कहते मगर “मूझे पूछा नहीं गया , मेरा अंतर्मन इस निर्णय से अत्यंत विचलित है , क्या मुँह लेकर लोगों के सामने जाऊँगा “ अवश्य कहा होता.

चिंता ,अफ़सोस ,शर्म ,लाचारी इस बात की नहीं कि एक ख़ास विचारधारा इस तरह के कुकृत्य करने वालों को प्रोत्साहित कर रही है कोफ़्त तो इस बात पर है कि समाज के रूप में हम इतने ग़ैरसंवेदनशील हो चुके कि विरोध के स्वर जिस स्तर पर उठने चाहिए वे नहीं उठ रहे . मीडिया की शर्मनाक स्थिति भी अब भारतीय समाज लगभग स्वीकार कर चुका है , कार्यपालिका का लोकतंत्र , नैतिकता , लोकलाज और मानवता से कोई लेना देना नहीं बचा है तब न्यायपालिका और समाज पर अंतिम ज़िम्मेदारी आती है जिसके निर्वहन में दुर्भाग्य से दोनो आज असफल सिद्ध हो रहे है.

कभी शाह बानो प्रकरण में अपनी आवाज़ बुलंदकर नैतिकता और धर्म निरपेक्षता के अलंबरदार बने लोग जब बिलक़िस बानो पर चुप रहते है या तीन तलाक़ पर महिलावादी न्यायवादी होने का ख़म ठोकने वाली आवाज़ें बिलक़िस के मामले में तालू से चिपक जाती है तो यह सभ्य समाज के नाम पर हमारे खोखले आडंबर , दोहरे चरित्र और अनैतिक पाखण्डी होने को सिद्ध करता है.समाज में यदि संवेदना बची हो और हम अगर सभ्य समाज कहलाने की थोड़ी भी इच्छा रखते है तो इस अनैतिक , अलोकतंत्रिक, अन्यायपूर्ण व्यवस्था का विरोध करना होगा. शाहबानो प्रकरण कांग्रेस के पराभव का टर्निंग पॉंइंट था , क्या बिलक़िस बानो भाजपा के पराभव का कारण बनेगा?

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