सरकारी , मठी और कुजात गांधीवादी !

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सरकारी , मठी और कुजात गांधीवादी !

चंचल 

कांग्रेस तीन प्रमुख धाराओं में चली है .परवरिश , प्रशिक्षण और प्राप्य की स्थिति कमोबेश एक  ही रही .प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने इन तीनो सहोदरों का नामकरण अपनी भाषा में किया है -    १- सरकारी गांधीवादी २- मठी गांधीवादी  ३- कुजात गांधीवादी 


चूँकि इन तीनो का कुटुम्ब  इतिहास सियासत के लम्बे उत्तर चढ़ाव से चला है चुनांचे इनका खेल  सियासत के मैदान में  ही देखा जाता है .इन तीनो में जो ' मठी ' है वह रचना के सहारे गांधी को कर्मकांड में खड़ा कर पूज्य तो बनाता है लेकिन गति नही पकड़ता , एक जगह खड़े खड़े क़दमताल करता है .विनोबा भावे इस मठ के सबसे बड़े प्रतिनिधि है .“सरकारी “ में कांग्रेस आती है .यह गांधी के  विचारों को सामने रख कर सत्ता के ज़रिए अवाम  को बेहतर ज़िंदगी देने सपना दिखाती  है और उस पर चलती भी है .बस इसकी एक दिक़्क़त है - हर दस साल में यह बीमार हो जाती है , जब यह सत्ता से हटने लगती है तो यह टूटने लगती है .यह  इसकी पुरानी बीमारी है .गांधी जी के जमाने से चली आ रही है .एक उदाहरण देख लीजिए २० / २१ में कांग्रेस एक ज़बरदस्त ताक़त बन कर उठती है , आ सहयोग  आंदोलन शुरू होता है , कांग्रेस सत्ता के नज़दीक है , यह स्थापित सत्य बन  रहा था कि चौरी चौरा कांड हो जाता है और कांग्रेस टूट जाती है .मोती  लाल नेहरु , मदनमोहन मालवीय , सप्रू , राज गोपालाचारी , चंद्र्शेखर आज़ाद वग़ैरह पार्टी से निकल जाते हैं .ब्रिटिश हुकूमत के अलंबरदार  डेविड लायड ज़ार्ज़  बकिंघम पैलेस को सूचित करते हैं - गांधी की कांग्रेस बिखर गयी है .बात सही भी थी , यहाँ तक क़ि गांधी जी के आंदोलन वापस लेने के फ़ैसले से सबसे  ज़्यादा मुखर मुख़ालफ़त अगर किसी ने किया था तो वे पंडित नेहरु और सरदार पटेल थे , लेकिन इन लोंगो ने गांधी जी का साथ नही छोड़ा ।३० तक आते आते फिर कांग्रेस खड़ी जो गयी .

   1948 में जब कांग्रेस फिर टूटी और समाजवादी अति उत्साह में कांग्रेस से बाहर आ गये तो इनके नेता पंडित नेहरु कांग्रेस से बाहर नही आए और बापू की बनाई मुख्य धारा में बने  रहे .1969में नेकीरामनगर कांग्रेस फिर टूटी है श्रीमती इंदिरागांधी कांग्रेस से बाहर कर दी गयी , लेकिन 71 तक आते आते फिर कांग्रेस मज़बूत हो गयी .

77 में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई और इसके जितने स्तम्भ थे एक एक कर कांग्रेस से बाहर चले गये .दो साल में फिर कांग्रेस मज़बूती  से आ खड़ी हुई .कांग्रेस कमजोर हुयी शरद पवार कांग्रेस से छिटक गये .नारायण दत्त तिवारी , अर्जुन सिंह जैसे लोग कांग्रेस  से गये लेकिन सत्ता में कांग्रेस के आते ही  फिर सब आ जुटे .

  इतिहास लिखता है - ' कांग्रेस तब टूटेगी जब यह सत्ता से बाहर रहेगी .'सरकारी गांधीवादी ' की यह सबसे बड़ी पहचान है .इसके बरक़्स इनके तीसरे  भाई हैं जो अपने को कुजात गांधीवादी कहते हैं .ये अपने 'सरकारी

भाई ' के ख़िलाफ़ चलते हैं .कुजात गांधीवादी यानी समाजवादी को तोड़ना हो तो इसे गद्दी दे दो , सत्ता में पहुँचते ही  यह खुद बिखरेगा और सत्ता को भी तोड़ देगा .उदाहरण देखिए  - तय था देश के प्रथम चुनाव के बाद जो सरकार बनती उसमें  सत्ता और संगठन में  समाज वादियों की निर्णायक भूमिका रहती , लेकिन इन्हें सत्ता से परहेज़  रहा .सरदार पटेल के मृत्यु के बाद पंडित नेहरु के उत्तराधिकारी हैं प्रथम पंक्ति के समाजवादी जयप्रकाश नारायण .लेकिन वन वक्त  पर जे पी ने सन्यास की घोषणा कर दी .67 में डॉक्टर लोहिया के गैरकांग्रेस वाद का प्रयोग सफल रहा  लेकिन उसमें समाजवादी भी शामिल  रहे और ये अपने मूल आचरण के चलते सरकार को तोड़ कर अलग जा खड़े हुए .69 तक समाजवादी बड़ी ताक़त के रूप में उभरते और देश की राजनीति को दिशा देते लेकिन डॉक्टर लोहिया की अचानक मृत्यु के बाद ये बिखर गये .73 आते आते फिर एक हुए क्यों की यह संघर्ष  काल है .77 में सत्ता में आए तो दो  साल में खुद टूटे और सरकार भी तोड़ लिए .इतिहास गांधीवाद के इस तीसरे धावक का गुण - दोष दर्ज  करता है - ये जो अपने को कुजात गांधीवादी बोलते हैं , ये जब तक संघर्ष में रहेंगे , एक रहेंगे , सत्ता में आते ही  बिखर जायंगे .

     लेकिन आज की चर्चा इन पर है जो सरकारी रहे , और छटक भी रहे हैं तो सरकारी  होने  के लिए .इन पर ज़्यादा बहस  भी  नही होनी चाहिए .

   इन्हें क्या चाहिए था , जो इन्हें नही मिला ? 

कांग्रेस की सम्भ्रांत बिरादरी है .“सत्ता सुख “ इनका लक्ष्य है .इन छिटकनेवालों की एक खूबी है .ये जनता से नही आते .इनका संघर्ष से कोई लेना देना नही है .ये किसी की उँगली  पकड़ कर आते हैं और स्थापित हो जाते हैं .वन वे इनका रास्ता है .बस पूछते रहेंगे - हमे कांग्रेस ने क्या  दिया , सिवाय राज्य सभा के ? मंत्री के एक पद के ? 

     - और क्या चाहिए आपको ? 

      - जो चाहिए वो अब कांग्रेस के पास है ही नही ! 

        - तब ? 

        - तब क्या ? जो चाहिए , जिनके पास है , उनके पास जाँयगे .

         - वो तो मालूम था ! 

         - वो कैसे ? 

         - संसद में रोने का एक सीन फ़िल्माया गया था .

       - जाते , जाते ! आप कुछ कांग्रेस को दिए हैं जो छूट 

           रहा है ? याद करके उसे लेते जाइएगा ! 

      इतिहास हँस रहा है .यह कल फिर आएगा

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