राजेंद्र तिवारी
तेलांगना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कहा है कि मोदी के खिलाफ थर्ड फ्रंट नहीं फर्स्ट फ्रंट बन रहा है. लेकिन वे इस फर्स्ट फ्रंट के नेता के सवाल पर साफ तौर पर कुछ कहने से बचते रहे लेकिन उनकी बातों से जो ध्वनि निकल कर आ रही है, उससे स्पष्ट है कि उनके बड़े भाई नीतीश कुमार ही इस पहले मोर्चे के नेता होंगे. बिहार में एक व्यापक फ्रंट महागठबंधन ने उनको नेता मान ही रखा है. इसमें राजद है और साथ में वाम दल, सांप्रदायिकता के खिलाफ जिनका ट्रैक रिकॉर्ड साफ-सुथरा है.
फांस कांग्रेस, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल को लेकर है. जहां तक कांग्रेस की बात है, नीतीश ने कांग्रेस लीडरशिप से भरोसा मिलने के बाद ही पाला बदला है. नीतीश कुमार को पता है कि हिंदी पट्टी में कांग्रेस के साथ के बिना उनके लिए राह बन पाना मुश्किल है. यही वजह है कि २०१९ से लगातार नीतीश कुमार कांग्रेस के साथ लगातार चैनल खोले हुए हैं. तो फिर दिक्कत कहां है?
तेलांगना में केसीआर की और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर की लड़ाई कांग्रेस से है. नवीन पटनायक की लड़ाई भी कांग्रेस से ही है. कांग्रेस का पेंच यहीं पर है. सवाल यह है कि क्या कांग्रेस इन राज्यों में आम चुनाव में स्पेस देने को तैयार होगी? इसका स्पष्ट जवाब तो कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही मिलने की संभावना बनेगी. लेकिन नीतीश कुमार और केसीआर ने बुधवार की प्रेस कांफ्रेंस जिस तरह के आत्मविश्वास का परिचय दिया, उससे कुछ संकेत तो मिलते ही हैं. नीतीश कुमार महीन राजनीतिज्ञ हैं और उन्होंने महागठबंधन में शामिल होने से पहले कांग्रेस से इन सवालों पर बात नहीं की होगी, यह नहीं माना जा सकता. नीतीश कुमार देश के अकेले राजनेता हैं जिन्होंने पिछले आठ-नौ साल में भाजपा से अलग होने, फिर भाजपा के साथ जाने और फिर भाजपा को दरकिनार करने के बावजूद सत्ता पर किसी को काबिज नहीं होने दिया. बिहार में आज भाजपा हताशा की स्थिति में है. ऐसे चतुर राजनीतिज्ञ ने अपनी चालें चलने से पहले इन सवालों पर होमवर्क नहीं किया होगा, यह नहीं माना जाना चाहिए.
ममता बनर्जी व अरविंद केजरीवाल के कोण पर बात करने से पहले यह जान लेना आवश्यक है कि नीतीश कुमार अपनी श्रेणी के अकेले राजनेता है जिनपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप चस्पा नहीं हो सकता. परिवारवाद से वे कोसों दूर हैं और कॉरपोरेट से उनका कोई गठजोड़ नहीं है. एक और खास बात कि नीतीश कुमार ने भाजपा की लाख कोशिशों के बावजूद बिहार को सांप्रदायिक तनाव से दूर रखा. ममता बनर्जी को लें तो भ्रष्टाचार व परिवारवाद के मुद्दे पर उनकी तख्ती साफ नहीं है.सिंगूर से ममता बनर्जी की छवि कॉरपोरेट विरोधी बनी जरूर थी लेकिन अब ऐसा नहीं है. सिर्फ सांप्रदायिकता के सवाल पर उनपर कोई छींटा नहीं है. अरविंद केजरीवाल भी भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता और परिवारवाद के मुद्दे पर स्पॉटलेस नहीं कहे जा सकते. कॉरपोरेट गठजोड़ की तो बात ही छोड़ दीजिए.
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