कांग्रेस के लिए नुक्सानदेह गुलाम नबी आजाद का इस्तीफा

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कांग्रेस के लिए नुक्सानदेह गुलाम नबी आजाद का इस्तीफा

हिसाम सिद्दीकी

नई दिल्ली! तकरीबन सबसे सीनियर लीडर गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया, इस पर पार्टी जनरल सेक्रेटरी जयराम रमेश जैसे लोग कुछ भी बयानबाजी करें, हकीकत यही है कि गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे से कांग्रेस को भी बहुत बड़ा नुक्सान हुआ है. इस वक्त पार्टी में आजाद के अलावा दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, सुशील कुमार शिंदे, अशोक गहलौत और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे चार-पांच सीनियर लीडरान हैं जो कांगे्रस को जानते हैं और देश उन्हें कांग्रेस के लीडर की हैसियत से जानता है. गुलाम नबी आजाद इन सबमें अकेले ऐसे लीडर थे जिन्हें पार्टी चलाने और पार्टी लीडरान को साथ लेकर चलने की सबसे ज्यादा सलाहियत है, बाकी पांच में अशोक गहलौत, राजस्थान के वजीर-ए-आला हैं. सुशील कुमार शिंदे को पार्टी कयादत ने अलग-थलग कर रखा है. दिग्विजय सिंह और कमलनाथ को मध्य प्रदेश तक महदूद कर दिया गया है. मरकजी सियासत में अकेले खर्गे हैं जो राज्य सभा में लीडर आफ अपोजीशन हैं. उनमें गुलाम नबी आजाद और दिग्विजय सिंह जैसी सलाहियतें नहीं हैं. इसलिए गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे से कांग्रेस का नुक्सान होना लाजिमी है. कांगे्रस के जो छुटभय्या लीडर यह इल्जाम लगा रहे हैं कि पार्टी ने आजाद को सबकुछ दिया, वह पचास साल तक मुसलसल आलाकमान के नजदीकी रहे. मुल्क की एक भी प्रदेश और यूनियन टेरिटरी ऐसी नहीं है जहां के जनरल सेक्रेटरी इंचार्ज गुलाम नबी आजाद न रहे हों. इसके बावजूद उन्होने पार्टी छोड़ी, राहुल गांधी पर तरह-तरह के इल्जाम लगाए, यह धोकेबाजी है. ऐसा कहने वाले यह भूल जाते हैं कि कोई भी पार्टी किसी ऐसे ही लीडर को आगे बढाती है और उसे सबकुछ देती है जिनमें कुछ कर दिखाने की सलाहियत हो, बेवकूफों को न कोई पार्टी कुछ देती है न आगे बढाती है.

गुलाम नबी आजाद ने इस्तीफे की शक्ल में पार्टी सदर सोनिया गांधी को पांच पेज का जो खत लिखा, उसमें उन्होने पार्टी की तबाही के लिए राहुल गांधी को ही जिम्मेदार ठहराया. जिक्र किया कि राहुल गांधी की वजह से पार्टी में सीनियर लीडरों के साथ कोई सलाह मश्विरा नहीं किया जाता, तमाम फैसले खुद राहुल गांधी, उनके चंद खुशामदी यहां तक कि उनके पीए और सिक्योरिटी के लोग तक करते हैं. इसपर राजस्थान के वजीर-ए-आला अशोक गहलौत ने कहा कि जब गुलाम नबी आजाद, संजय गांधी के नजदीकी की हैसियत से पार्टी की मरकजी कयादत में आए थे, उस वक्त इसी किस्म की बातें संजय गांधी और उनके ग्रुप के लोगों के लिए कही जाती थीं. फिर अब वह बुरा क्यों मान रहे हैं. यह सही है कि गहलौत को राहुल गांधी की हिमायत में आजाद के खिलाफ ही बोलना चाहिए लेकिन गहलौत बोलते वक्त यह भूल गए कि जब संजय गांधी का दौर था उस वक्त अगर नौजवानों की टीम संजय गांधी के साथ थी तो सीनियर कांग्रेसियों के साथ इंदिरा गांधी थीं. सीनियर लीडरान से पूरा राय मश्विरा किया जाता था तमाम बुराइयों के बावजूद संजय गांधी या उनके साथी सीनियर लीडरान की कभी तौहीन नहीं करते थे वह यह कभी नहीं करते थे कि किसी सीनियर लीडर को बात करने के लिए बुलाते और उसे बिठाकर बात करने के बजाए उसके सामने अपने कुत्ते से खेलते रहते.

अगर सोनिया गांधी की सेहत खराब न होती तो शायद राहुल गांधी और उनके ईद-गिर्द जमा आरएसएस जेहन के लोगों को पार्टी को बर्बाद करने का मौका न मिलता. हालत यह है कि राहुल गांधी आज भी दिग्विजय सिंह, सुशील कुमार शिंदे, भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, कमलनाथ, जनार्दन द्विवेदी वगैरह पर सीधे आरएसएस से आए हुए मधूसूदन मिस्त्री को तरजीह देते हैं. जयराम रमेश भी उनके नजदीकी हैं जोे 2004 में चन्द्र बाबू नायडू के सलाहकार बनकर अटल बिहारी वाजपेयी और आडवानी के साथ काम करने जा रहे थे, इत्तेफाक से उनके अपवाइटमेंट में थोड़ी ताखीर हुई लोक सभा एलक्शन हुआ मनमोहन सिंह की कयादत में यूपीए की सरकार बन गई तो जयराम रमेश फिर से कांग्रेसी हो गए. राहुल की सबसे बेहतर पसंद केरल के के सी वेणुगोपाल हैं जो केरल की मकामी सियासत की वजह से अकलियतों खुसूसन मुसलमानों के सख्त मुखालिफ हैं. वह न हिन्दी जानते हैं न कांगे्रस को जानते हैं न देश को लेकिन राहुल गांधी ने कांग्रेस सदर दफ्तर का इंचार्ज जनरल सेक्रेटरी बनाकर उन्हें बिठा रखा है.

गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि वह न किसी पार्टी में जा रहे हैं न मोदी के एनडीए में और न बीजेपी में क्योकि कोई भी कश्मीरी बीजेपी में नहीं जा सकता है. वह अपनी अलग पार्टी बनाएंगे और उसके जरिए सियासत करेंगे. गुलाम नबी आजाद की एक बात और कई कांग्रेसियों को बहुत बुरी लगी है जो उन्होने कहा कि 2019 के लोक सभा एलक्शन में राहुल गांधी को ‘चैकीदार चोर है’ के नारे के जरिए नरेन्द्र मोदी पर जाती हमला नहीं करना चाहिए था. गुलाम नबी आजाद की इस बात पर राहुल गांधी और उनके बनाए हुए ग्रुप के लोग उन्हें चाहे जितना भला-बुरा कहे, उनकी बात कहीं से गलत नहीं है. इसलिए सही या गलत नरेन्द्र मोदी देश की आबादी के एक बहुत बड़े हिस्से में जो मकबूलियत (लोकप्रियता) हासिल कर चुके हैं उतनी मकबूलियत इस वक्त देश में किसी दूसरे की नहीं, राहुल गांधी की तो बिल्कुल नहीं है. राहुल गांधी ने जितना ‘चैकीदार चोर है’ का शोर मचाया उतना ही हिन्दू समाज में मोदी के हामियों में इजाफा होता गया. राहुल गांधी शायद इस गलतफहमी में थे कि 1988 में जिस तरह बोफोर्स का मुद्दा बन गया था और चार सौ चैदह (414) सीटंे जीतने वाले उनके वालिद राजीव गांधी 1989 में एक सौ इक्तालीस (141) सीटांेे पर आ गए थे उसी तरह राफेल मामले में वह देश को मोदी के खिलाफ खड़ा कर देंगे. वह यह भूल गए कि मोदी ने 2002 से ही हिन्दू जज्बात भड़काने की सियासत शुरू की थी, वह सियासत 2019 तक अपने शबाब पर पहुंच चुकी थी. इसका अंदाजा आज भी लगाया जा सकता है कि बेरोजगारी, महंगाई, गैस सिलेण्डर की बेतहाशा बढी कीमत और खाने-पीने के मामूली सामानों तक पर जीएसटी वसूली के बावजूद देश की तकरीबन आधी हिन्दू आबादी मोदी की हिमायती है. ऐसे में मोदी को चोर कहना यकीनन अपना ही नुक्सान कराना था.  

मुल्क में एक अकेला उत्तर प्रदेश है जहां गुलाम नबी आजाद जनरल सेक्रेटरी इंचार्ज रहकर कामयाब नहीं हुए, वर्ना पंजाब में जब दहशतगर्दी शबाब पर थी तो वहां भी तकरीबन चार साल तक उन्होनेे मेहनत करके न सिर्फ कांग्रेस को मजबूत किया बल्कि एलक्शन हुए तो पार्टी की सरकार बनी. आंध्र प्रदेश में पार्टी में कई ग्रुप थे, चन्द्र बाबू नायडू की कयादत में टीडीपी दस साल से मजबूती से सरकार चला रही थी. पार्टी ने गुलाम नबी आजाद को आंध्र प्रदेश भेजा तो 2004 में आंध्र प्रदेश के तमाम ग्रुपों के लीडरान को इकट्ठा करके उन्होंने मुकम्मल अक्सरियत के साथ पार्टी की सरकार बनाने का रास्ता हमवार किया. यूपीए की पहली सरकार के दौरान उन्हें कश्मीर भेजा गया तो जम्मू-कश्मीर असम्बली में उन्होने न सिर्फ कांग्रेस की सीटें दो से इक्कीस तक पहुंचा दी बल्कि आधा दर्जन से ज्यादा आजाद मेम्बरान असम्बली को भी कांग्रेस खेमे में ले आए और कश्मीर में पीडीपी के साथ तीन-तीन साल की सरकारेें बनाईं. कश्मीर से वापस आए उस वक्त उनके और सोनिया गांधी के रिश्तों में थोड़ा तनाव पैदा हो गया था. इसके बावजूद 2009 के एलक्शन में सोनिया गांधी ने उन्हें फिर आंध्र प्रदेश का इंचार्ज बनाकर भेजा तो वहां न सिर्फ कांग्रेस की सरकार वापस आई बल्कि लोक सभा की 42 में से इक्तालीस सीटें कांग्रेस ने जीती और दोबारा मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार बनना तय हुआ.


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