चंचल
भारत जोड़ो यात्रा का आठवाँ दिन है , तारीख़ है चौदह सितंबर , हिन्दी दिवस . यात्रा केरल के पालिमुक्कु जंकसन् की जद में है . न कोई तड़क - भड़क , न चमकना न गुर्राना बस नीले आसमान पर कालिख ज़रूर उभरा . जैसे किसी बच्चे ने तकिये के नीचे से कजरौटा खींच कर माँ की छाती पर , मुलायम गदोरी से रगड़ दिया हो . अचानक बूँदे गिरने लगी . सामने रेस्तराँ का दरवाज़ा खुला था . केरल ने राहुल का हाथ खींच कर बेंच पर बिठा दिया . बाक़ी पथिक अपनी अपनी सुविधा में धँस गये . ताड की छत नीचे मलयालम उठी -
प्रियंकुम वाररून्नुत ?
प्रियंका गाँधी केरल पहुँच रही हैं मलयालम बता रहा है .
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश एक तख़्त पर आ गये हैं .
- यहाँ हिन्दी नहीं चलती ? न ! मध्यप्रदेश ने बटुए से सरौता निकाला . उत्तर प्रदेश ने हामी भरी और सवाल किया - ' गुना ' में सोपारी होत है ? ( गुना मध्य प्रदेश का एक निहायत खूबसूरत शहर है . )
- न्ना ! सोपारी मसाला सब हियहीं से तो जात है !
- गुना में एक बहुत बढ़िया आदमी रहते हैं , नाम है अतुल लम्बा . जानते हैं ?
- लम्बा नहीं , लुम्बा .
आसमान साफ़ . दरख़्तों ने मुँह धो लिया . काली तारकोल पुती सड़क ने अँजुरी भर पानी का छींटा मुँह पे डाल कर आईना हो गई है .
एक बैण्ड पार्टी पूरे साजो सामान के साथ धुन निकाला - सारे जहाँ से अच्छा , हिन्दोस्तान हमारा , हमारा . तिरंगा आसमान में लहरा उठा . तमिल , मलयाली , पंजाबी , गुजराती , अवधी , सब के कंठ खुल गये हैं , पैर थिरक रहे हैं .
- मलयाली लोग हिन्दी बूझते हैं ?
- यह हिन्दी नहीं है ! उर्दू है
- बुडबक हो , उर्दू है तो इसका हिन्दी में अनुवाद क्या होगा ?
पेंच उलझ गई ! नही ! ऐसा नहीं है . पेंच हम फँसाते हैं , भाषा नहीं . उसे खुला छोड़ो , बहने दो .
प्रियंका गाँधी ! ज़िंदा बाद
नीचे दो तस्वीरें हैं . प्रियंका गाँधी और उस महिला पुलिस की भाषा एक है पर दोनों अपने अपने “ स्व” पर उलझे हैं , लेकिन भाव एक है , दोनों एक दूसरे के स्व को समझते हैं . पर मिठास का क्या करें ? वो रहेगा ही .
दूसरी तस्वीर दो अलहदा ज़ुबान के पथिक हैं , लेकिन सब एकाकार है . करुणा !
यही तो जोड़ता है
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