जलवा एक खांटी समाजवादी का !

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जलवा एक खांटी समाजवादी का !

अंबरीश कुमार 

मुलायम सिंह यादव नहीं रहे . उत्तर प्रदेश की राजनीति में उनका एक अलग स्थान रहा .उत्तर भारत की सामाजिक न्याय की राजनीति में वे चौधरी चरण सिंह के बाद वे शीर्ष नेता रहे जिन्होंने पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों का एक नया और मजबूत गठजोड़ बनाया . बिहर में लालू यादव से पहले मुलायम सिंह यादव ने सामाजिक न्याय की राजनीति की शुरुआत की .  मुलायम सिंह की राजनीति और उनके राजनीतिक सफर को समझने के लिए कुछ पीछे जाना पड़ेगा . उत्तर प्रदेश का एक नारा जो किसी नेता के नाम पर ज्यादा लोकप्रिय रहा वह था ,जलवा जिसका कायम है ,उसका नाम मुलायम है !यह नारा प्रदेश में किसी और नेता के लिए हमने नहीं सुना .यह नारा उनकी राजनीतिक पूंजी का एक छोटा सा हिस्सा है . वह नेता जो सुबह आठ बजे तक अपनी पार्टी के सौ से ज्यादा कार्यकर्ताओं से मुलाकात समूचे प्रदेश की राजनीतिक नब्ज को जानता समझता था वह नेता जिसे धरती पुत्र कहा जाता था उसका एक दौर में लखनऊ में अपना कोई पता नहीं था . 

वर्ष 1980 का समय था. चौधरी चरण सिंह लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और मुलायम सिंह यादव को उन्होंने लोकदल का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था . मुलायम सिंह यादव विधान सभा का चुनाव हार गए थे और लखनऊ में उनका रहने का ठिकाना नहीं था . लोकदल का दफ्तर तब 6 ए राजभवन कालोनी में था . इसी के एक कमरे में मुलायम सिंह यादव रहते थे . एक तखत था सोने के लिए जिसपर कोई दरी या गद्दा नहीं सिर्फ चादर बिछा दी जाती जाती थी . बगल का एक कमरा लोकदल के महासचिव राजेंद्र चौधरी का था और उन्हे भी एक तखत मिल हुआ था . राजेंद्र चौधरी जो इस समय समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता हैं उन्होंने कहा ,वह अलग दौर था जब न रहने का कोई अपना ठिकाना था न भोजन की कोई व्यवस्था . जो मिल जाए खा  लिया जाता था . नेताजी मुलायम सिंह यादव जमीन से जुड़े .  मुलायम सिंह यादव टूटी सायकिल ,मोटर साइकिल और बाद में खटारा जीप तक से चलते रहे . 

खांटी समाजवादी नेता थे और किसी तरह की सुविधा मिले इसकी चिंता भी नहीं करते थे . यही मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री बने और कुछ साल पहले जब पूर्व मुख्यमंत्री को मिलने वाला सरकारी आवास उनसे खाली कराया गया तभी भी उनके पास लखनऊ में अपना कोई निजी आवास नहीं था जहां वे अपनी सुरक्षा व्यवस्था के मुताबिक रह सकें . खैर वे गांव से निकले और उनका अंतिम सफर भी गांव में खत्म होगा . मंगलवार को सैफई में उनका अंतिम संस्कार होगा . वह सैफई जिसके बारे में तरह तरह के किस्से तो खूब गढ़े गए पर यह कम लोग जानते हैं कि मुलायम सिंह ने स्वास्थ्य क्षेत्र में जो ढांचागत सुविधाएं इस अंचल में खड़ी कर दी उसका फायदा सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश ,बुंदेलखंड और मध्य उत्तर प्रदेश के लोग ही नहीं उठाते है हैं बल्कि मध्य प्रदेश से लगे जिलों के लोग भी इटावा अपने इलाज के लिए आते हैं . मुलायम सिंह का नारा भी तो था ,

रोटी कपड़ा सस्ती हो दवा पढ़ाई मुफ़्ती हो ! शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में मुलायम सिंह ने महत्वपूर्ण काम किया खासकर ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की शिक्षा के लिए . मुलायम सिंह की समाजवादी राजनीति जसवंत नगर से शुरू हुई जब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता नाथू सिंह ने उन्हे 1967 में विधान सभा का टिकट दिलवाया . तबतक लोहिया के गैर कांग्रेसवाद की भी शुरुआत हो चुकी थी . तब 28 साल की छोटी सी उम्र में मुलायम सिंह यादव विधान सभा जो पहुंचे तो फिर लगातार आगे बढ़ते गए और लालू यादव ने लंगड़ी न मारी होती तो वे प्रधानमंत्री भी बन जाते .  

पर महत्वपूर्ण भूमिका राजनीतिक और सामाजिक न्याय की ताकतों को साथ लाने की रही जिसके चलते वे प्रधानमंत्री की कुर्सी के करीब पहुंच गए . हालांकि वे खुद प्रधानमंत्री नहीं बन पाए पर इंद्र कुमार गुजराल को तो बनवा ही दिया . नब्बे के शुरुआत में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा राम मंदिर आंदोलन के जरिए तूफान खड़ा कर चुकी थी तब एक राजनीतिक गठजोड़ से मुलायम सिंह ने उसकी हवा निकाल दी थी . नारा लगा ,मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जयश्री राम. पर इस नारे से पहले कांशीराम ने मुलायम सिंह यादव को अपनी पार्टी बनाने का सुझाव दिया जिससे उन्होंने बाद में चुनावी तालमेल किया . इसी के चलते वार्स 1993 में मुलायम सिंह फिर दूसरी बार मुख्यमंत्री बने . हालांकि यह गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चला और मायावती के साथ हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद दोनों दलों में जो तल्खी आई वह 2019 तक रही . 

मुलायम सिंह यादव न सिर्फ जमीनी राजनीति करते बल्कि खरी खरी बात कहने से भी नहीं चूकते . वर्ष 2005-06 का दौर था . दादरी में रिलायंस के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया था जिसकी नियमित कवरेज यह संवाददाता जनसत्ता में कर रहा था और इसे लेकर समाजवादी पार्टी के तत्कालीन महासचिव अमर सिंह बहुत नाराज थे . खासकर उस नारे को लेकर जिसका जिक्र मेरी खबरों में अक्सर होता ,जिस गाड़ी पर सपा का झंडा -उस गाड़ी में बैठा गुंडा . यह नारा राजबब्बर का था और इसका अपनी सभाओं में वे जिक्र करते  .  उसी दौर में इंडियन एक्सप्रेस का एक आयोजन लखनऊ के ताज होटल में हुआ और उसमें मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव मुख्य अतिथि थे . मैं आगे ही बैठा था और अमर सिंह मंच पर आए . इंडियन एक्सप्रेस की तो तारीफ की पर मेरी तरफ इशारा कर बोले ,अगर जनसत्ता की नकारात्मक खबरें दुरुस्त हो जाएं तो सब ठीक हो जाएगा . इसके बाद मुलायम सिंह बोले . वे भी कुछ नाराज थे . मुलायम सिंह ने कहा ,हमारा वॉटर तो न अंग्रेजी जानता है और न अंग्रेजी अखबार पढता है . वह हिंदी पढता है और जनसत्ता में कुछ छपता है तो उसका असर जरूर पड़ता है . साफ इशारा पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के दादरी आंदोलन की कवरेज को लेकर था . इस आंदोलन के चलते मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी चुनाव हार गई . पर इस वजह से उन्होंने अखबार या इस संवाददाता से काभी कोई नाराजगी नहीं जताई और उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में पूर्वी उत्तर प्रदेश का पहला दौरा में मुझे साथ चलने को कहा . तब मुझे मुलायम सिंह को करीब से जानने समझने का भी मौका मिला . 

ये मुलायम सिंह ही थे जो एक तरफ आजम खान को पार्टी में रखते और दूसरी तरफ अमर सिंह को भी . और कई बार आजम खान की तीखी टिपण्णी से आहत भी होते और समझाने की कोशिश करते . खुद एक बार बाबतपुर में मुझसे कहा ,जयाप्रदा उन्हे अपना बड़ा भाई मानती हैं पर वे क्या क्या नहीं कहते . 

हालांकि इन्ही मुलायम सिंह के खिलाफ भाजपा लगातार आक्रामक रही और मुल्ला मुलायम तक कहा तो उसके पीछे यही नहीं, जब दो नवंबर, 1990 की घटना थी जब  कारसेवकों  पर पहले लाठीचार्ज फिर गोली चली. और नरेंद्र मोदी की  छप्पन इंच .. वाली टिपण्णी भी मुलायम सिंह पर ही थी .पर आज सबसे भाउक टिपण्णी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही रही उन्होंने 2019 की सांसद में मुलायम सिंह की अंतिम टिपण्णी का जिक्र किया . 

मुलायम सिंह पर तरह तरह के आरोप लगे पर निजी जीवन शैली पर उसका कोई असर देखने को तो नहीं मिला . शुद्ध शाकाहारी सादा भोजन करने वाले मुलायम सिंह की दिनचर्या एक किसान वाली ही रही . दौरे पर देखा कुछ फल और एक थर्मस फ्लास्क में मठठा यही उनका खाना होता पर साथ चल रहे लोगों के खानपान का पूरा ध्यान रखते .  कुछ दिनों पहले उनकी दूसरी पत्नी साधन गुप्ता का निधन हुआ था जिसके बाद संभवतः वे अकेले  पड़ गए थे और आज सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली . 

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