रमा शंकर सिंह
जैसे हमारे पुरुखों से हाथ बंधवा कर खड़े रखते थे , उनके लिये ये चित्र बहुत सुखकारी है. उम्मीद है कि मप्र् के मुख्यमंत्री बनने तक ऐसे अनेक अवसर आयेंगें. आज उसी जयविलास महल में रानी झाँसी लक्ष्मीबाई का चित्र लगाना पड़ा है जहॉं के फ़रमान से कभी रानी को मदद न दी गई थी और वे इसी महल से दो सौ मीटर की दूरी पर ही अंग्रेजों से लड़ती हुई शहीद हो गयी थीं.
इस चित्र का दूसरा पहलू भी हैं जो कि अदृश्य है कि मात्र दो साल पहले तक चित्र में खड़े अधिकांश नेता रानी झाँसी के इसी प्रसंग का पाठ अपनी सभाओं में ज़ोर-ज़ोर से करते थे और इसी आधार पर वोट माँगते थे वे सब इतिहास के इस पन्ने को चबाकर हज़म कर चुके हैं और अब कभी भी उसे दोहराने की हिमाकत नहीं करेंगें.
तीसरा पहलू यह भी है कि राजपरिवार अंतत: सत्य को स्वीकार कर सका और जनमत के समक्ष उसे झुकना पड़ा चाहे मन से या बेमन से जैसा कि राघौगढ़ जैसी छोटी रियासतों के तमाम घराने राजनीतिक वर्चस्व के लिये कर चुके थे . यह निश्चित ही लोकतंत्र की ताक़त है . लोकतंत्र आने के बाद पचास साल लगे कि भारत के शासन व जन प्रतिनिधित्व से राजघराने विलुप्त हुये एक दो अपवाद छोड़कर जिन्हें जाते जाते शायद दस बीस बरस और लग जायें .
आज से क़रीब क़रीब पैंसठ साल पहले इसी धरती पर लोकतंत्र का एक क्रांतिकारी प्रयोग हुआ था जबकि ग्वालियर की तत्कालीन महारानी ( राजमाता विजयाराजे सिंधिया ) के विरुद्ध भारत की सोशलिस्ट पार्टी के नेता डा० लोहिया ने एक मेहतरानी ( सुक्खोरानी ) को चुनाव में उतार कर मतदाताओं से अपील की थी वे भारतीय लोकतंत्र का इतिहास रचें और सुक्खोरानी को जितायें .
वह दिन भी आया ही जब प्रजा के ही एक सदस्य ने लोकतंत्र में अति प्रभावी रहे इस शाही परिवार को उसी रियासत के भीतर हरा दिया . ऐसा दो बार हो चुका है एक बार गुना में और एक बार भिंड में . ग्वालियर में यह होना शेष है . भाजपा के ही एक युवा प्रत्याशी ने ग्वालियर में यह करिश्मा क़रीब क़रीब कर ही दिया था जब शासन प्रशासन और कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी पूर्व महाराजा को एक छोटे से अंतर से जीतने दिया था. यह राजनीति के चाल चरित्र चेहरे की बदसूरती है कि वो कार्यकर्ता अब भुला दिया जा रहा है .
एक और रहस्योद्घाटन हुआ पिछले बरसों के राजनीतिक घटनाक्रम में कि बहुप्रचारित ईमानदारी तार तार होकर बिखरी पाई गई जब बैंगलुरु में ग्वालियर की कथित आन बान शान ने कई सौ करोड़ रूपयों का सौदा कर विधायक तोड़े और सरकार पलट का खेला किया . अब तो ख़ैर वे विधायक और मंत्री निजी बातचीत में सब बताने लगें हैं. एक खेला और होगा जब भी या जल्दी हो कि कांग्रेस को मप्र में एक मर्मांतक झटका लगेगा जब सत्ता पिपासु २०२३ में एक और बड़ा दलबदल कर पुन: अपनी कोख पर वात मारेगा . कौन ? देखते जाइये . भारतीयलोकतंत्र के कई नये पन्ने इसी धरती पर लिखे जाने बाक़ी हैं . रमा शंकर सिंह की वाल से साभार
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