प्रोफेसर राजकुमार जैन
कई सालों से कशमकश में था कि यह लिखूँ या नहीं. , परंतु अब मैंने सोचा इसमें एक ऐसे हीनभावना ग्रस्त, अहसान फरामोश इंसान की मनोदशा से उभर कर बाद में फिल्मी दुनिया का ‘सदी का महानायक’ बनने की हकीकत है, तो यह बुराई, निंदा, बदनामी का सबब न बनकर उसकी तारीफ के रूप में ही जानी जाएँगी. तब जाकर मैं लिख रहा हूँ. अमिताभ बच्चन ने दिल्लीविश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज से बी॰एस॰सी॰ की परीक्षा पास की थी. मैं भी किरोड़ीमल कॉलेज का छात्र था, अमिताभ मुझसे तीन साल सीनियर थे.
बहुत मुद्दत हुई एक बार मैं रेल से सफर कर रहा था, समय काटने के लिए मैंने साथ के मुसाफिर से जो किसी हिंदी फिल्मी पत्रिका को पढ़कर थक चुके थे उनसे वह पत्रिका मांग कर पढ़ना शुरू कर दिया, उसमें अमिताभ बच्चन का एक साक्षात्कार छपा था.
उसमें उन्होंने कहा था कि मैं शेरवुड स्कूल, नैनिताल से, हायर सैकण्डरी पास करके दिल्ली आ गया था. , मेरे पिता जी डॉ॰ हरिवंशराय बच्चन दिल्ली में रहते थे, आगे की पढ़ाई के लिए मैंने दिल्ली के सैंट स्टीफन्स कॉलेज में दाखिले के लिए आवेदन किया, मेरे को वहाँ दाखिला मिल रहा था,परंतु मेरे पिताजी का मानना था कि सैंट स्टीफेंस कॉलेज में पश्चिमी, अंग्रेज़ी वातावरण है इसलिए तुम दूसरे किसी कॉलेज में दाखिला लो. मैंने किरोड़ीमल कॉलेज में दाखिला ले लिया. वहाँ से बी॰एस॰सी॰ की परीक्षा पास की. मेरी ज़िंदगी में वह तीन साल एक मायने में वक़्त काटना ही था, मैं वहाँ से कुछ हासिल न कर सका.
उनका वह साक्षात्कार पढ़कर मेरा खून खोल उठा, मेरे मुँह से अनायास ही निकला, 'अहसान फरामोश' इनफीरिओरिटि का मारा, हीन भावना से ग्रस्त, हमारे कॉलेज से निकला झूठा अगर इसे सेंट स्टीफन कॉलेज में दाखिला मिल रहा होता तो यह कभी ना छोड़ता. किरोड़ीमल कॉलेज में जब अमिताभ बच्चन पढ़ते थे तब वह, एक नॉन आईडेंटिटी थे. बीएससी की परीक्षा पास करके वह बम्बई में एक मैडिसन कम्पनी का प्रतिनिधि बनकर मामूली तनख्वाह पर दवाई का प्रचार घूम-घूम कर करते थे. पर बहुत कम लोग ही जानते है कि वही अमिताभ बच्चन जो बाद में एक्टिंग के बल पर ‘सदी का महानायक’ फिल्मी शहनशाहां ‘बिग बी’ के खिताब से नवाजे गए उनकी शख्शियत को गढ़ने में किरोड़ीमल कॉलेज तथा खासतौर पर प्रोफेसर फ्रैंक ठाकुरदास की कितनी बड़ी भूमिका है.
किरोड़ीमल कॉलेज में, उस समय एक, आर्ट कल्चर ड्रैमेटिक सोसायटी होती थी, उसका संचालन प्रोफे़सर फ्रैंक ठाकुरदास करते थे. एक भव्य आकर्षक व्यक्तित्व की सारी खूबियाँ प्रो॰ फ्रैंक ठाकुरदास मे थी. 6 फुट क़द,लम्बे बाल, भरा हुआ शरीर पुराने रिवाज़ के मुताबिक गर्मियों में भी ढीली पेंट के ऊपर सूती कपड़े का बंद गले, खुले बटनका कोट, बेजोड़ अंग्रेज़ी भाषा बोलने की महारत तो थी ही.
परंतु इसके अलावा उनकी कई ऐसी खूबियाँ थी, जो मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में 46 वर्ष एक छात्र और शिक्षक के रूप में कैम्पस में रहकर, पढ़कर- पढ़ाकर बिताए है, वह किसी दूसरे शिक्षक में देखने को नहीं मिली.
फ्रैंक ठाकुरदास पहले शिक्षक थे, जिन्हें 'छात्र' 'सर' कहकर नहीं 'अंकल' कहकर पुकारते थे. उन्होंने ही मेरा के॰एम॰ कॉलेज में इंटरव्यू लेकर दाखिला दिया था. मैं उनका छात्र था, प्रथम वर्ष में वे वैस्टर्न पोलिटिकल थोट पढ़ाते थे. अंकल फ्रैंक की एक और खासियत उनकी गजब की स्मरण शक्ति थी हर छात्र का पहला नाम लेकर उसको पुकारते थे.
उस समय मेरे साथ, हिंदुस्तान के मशहूर अंग्रेज़ी पत्रकार, प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह के मीडिया एडवाइजर रह चुके तथा हिंदुस्तान टाइम्स, द टाइम्स ऑफ इण्डिया,दि हिंदु अख़बार के संपादक, तथा ट्रिब्यून के मुख्य संपादक रह चुके हरीश खरे मेरे सहपाठी थे. उन दिनों कक्षा में हाजरी की अनिवार्यता होती थी, अंकल फ्रैंक कभी भी क्लास में हाजरी का रजिस्टर नहीं भरते थे, परंतु याददाश्त के आधार पर ही हाजरी भर देते थे. हरीश खरे को हाजरी कम होने के कारण इम्तहान में बैठने का एडमिशन कार्ड नहीं मिल रहा था, उसी तरह उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की भी हाजरी कम थी. मैंने परीक्षा से पहले नोटिस बोर्ड पर पढ़कर हरीश खरे को उसके शक्तिनगर के घर पर ख़बर दी. अंकल फ्रेैंक के अथक प्रयास से उस मुसीबत से छुटकारा मिला. बाद में हरीश खरे ने एम॰ए॰ की परीक्षा में दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान गौल्ड मैडल पाकर कॉलेज का नाम रोशन किया. इसी वजह से नवीन पटनायक भी परीक्षा में बैठ सके.
अंकल फ्रैंक, कॉलेज की ड्रैमेटिक सोसायटी के इंचार्ज थे छात्रों को ड्रामा, डिबेट, संगीत में भाग लेने के लिए प्रेरित करने के साथ-साथ उनके लिए आवश्यक साजो-सामान का बंदोबस्त भी करते थे. कॉलेज से बाहर के विद्वानों को बुलाकर छात्रों का शिक्षण करवाते थे. वह न केवल सांस्कृतिक गतिविधियों में रुचि लेते थे, खेल-कूद में भी, उनका उत्साह देखने वाला होता था. हमारे समय में एक वाइस चांसलर ट्राफी होती थी, जिसमें विभिन्न खेलों में अधिकतम नंबर जो कॉलेज पाता था, उसे ट्राफी मिलती थी. एक वक़्त ऐसा था कि कॉलेज के फिजिकल डायरेक्टर हरवंश सरीन सर, अंकल फ्रैंक के साथ मिलकर ग्यारहवीं पास करने वाले छात्रों पर नज़र रखकर, उन्हें कॉलेज में दाखिला लेने के लिए गर्मी की छुट्टियों में ही भागदौड़ करते थे.
मेरे समय में क्रिकेट, हाकी, फुटबाल, बास्केटबॉल, कुश्ती सहित जितने भी खेल थे, सभी में किरोड़ीमल कॉलेज ने अतःविश्वविद्यालय प्रतियोगिता में बाजी मारकर वाइस चांसलर ट्राफी जीती थी. दिल्ली और दिल्ली से बाहर के कॉलेजों के खिलाड़ियों को ढूंढ ढूंढ कर कॉलेज की टीम में शामिल करते थे. हमारे कॉलेज की फुटबॉल टीम बहुत मजबूत नहीं थी, फ्रैंक साहब तथा सरीन साहब ने तब के दिल्ली कॉलेज से 4 बेहतरीन फुटबॉल खिलाड़ियों को आकर्षित करके के एम कॉलेज की टीम में शामिल करवा लिया इसी फुटबॉल टीम मे दिल्ली यूनिवर्सिटी की फुटबॉल टीम के कैप्टन अजीज कुरैशी जो कि भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त रहे एस वाई कुरैशी के भाई हैं, उनकी कैप्टनशिप में किरोड़ीमल कॉलेज ने इंटर कॉलेज फुटबॉल चैंपियनशिप जीती थी. खिलाड़ियों के लिए कॉलेज में क्या जज्बा था उसका उदाहरण, विभिन्न कॉलेजों के खेलों के कैप्टन वोट करके दिल्ली यूनिवर्सिटी के खेल की टीम का कैप्टन चयन करते थे. पाँच खेलों के विश्वविद्यालय के कैप्टन किरोड़ीमल कॉलेज के ही चुने गए, उसके लिए पूरी रणनीति अंकल फ्रैंक और सरीन साहब बनाते थे. हाकी टीम के कप्तान जीवन कुमार जो कि कनॉट प्लेस के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर के पुजारी खानदान के हैं बड़ी ही सुनियोजित चतुराई से दिल्ली विश्वविद्यालय हाकी टीम के कप्तान चुने गए . आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि मैच के समय फ्रैंक साहब छात्रों की तरह उत्साह में हाथ हिला-हिलाकर उत्साह में शाबाश, bravo, well done, excellent कहते रहते थे. एक नजारा अभी तक मेरी आँखों के सामने घूमता है, अतः कॉलेज कुश्ती प्रतियोगिता, हंसराज कॉलेज के मैदान में चल रही थी किरोड़ीमल कॉलेज के पहलवान जगदीश सेठी जो कि बाद में दिल्ली पुलिस में असिस्टेंट कमिश्नर पुलिस के पद से रिटायर्ड हुए, कश्ती लड़ रहे थे. फ्रैंक साहब कुश्ती स्थल पर मौज़ूद थे, फ्रैंक साहब इतने उत्साह में भर गए कि ज़ोर से बोलने लगे जगदीश इसका लैग पकड़ लो, शाबाश छोड़ना नहीं. अपने छात्रों का खेल के मैदान पर उत्साह बढ़ाते हुए, वह एक शिक्षक नहीं सहपाठी छात्र बन जाते थे.
विश्वविद्यालय की अंतिम परीक्षा में किरोड़ीमल के छात्र जब परीक्षा देने जाते थे, फ्रैंक साहब को परीक्षा का टाइम टेबल पहले से पता होता था, छात्र परीक्षा देकर हॉल से बाहर निकलते थे, फ्रैंक साहब वहाँ खड़े मिलते थे, Very good my dear boy, don't worry every thing will be fine अगर कोई छात्र कहता कि सर पेपर अच्छा नहीं हुआ तो फ्रैंक साहब उसका ढाढस बंधाते.
अंकल फ्रैंक कॉलेज के स्टाफ क्वार्टर में रहते थे, उनकी पत्नी कमला ठाकुरदास एक कॉलेज की प्रिंसिपल थी. उनके घर पर छात्रों, अध्यापकों का मेला लगा रहता था .
मैं उन दिनों छात्र आंदोलन में भाग लेने के कारण विश्वविद्यालय से सस्पेंड भी हुआ, गिरफ़्तारी, जेल तथा पुलिस की मार भी खाता था. अंतः कॉलेज वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेने पर प्रथम पुरस्कार भी मिल जाता था यह अंकल फ्रैंक थे, जो सबसे पहले मेरा उत्साह बढ़ाने से लेकर, मेरी तरफदारी करते थे.
हमारे कॉलेज की डिबेट सोसायटी के सचिव, सिड़नी रिबोरो होते थे. वह जब फ्रैंक साहब को सूचना देते थे कि फलां कॉलेज से आज ट्राफी जीत कर आई है तो फ्रैंक साहब मज़ाक में कहते थे, इसमें कौन सी नयी बात है.
कॉलेज की ड्रामा सोसायटी में अंकल फ्रैंक विशेष रुचि लेते थे. ड्रामों की रिहर्सल में जब देर होती थी तो नाश्ता, चाय-पानी का इंतजाम भी करते. एक-एक विद्यार्थी पर पैनी नज़र रखते हुए कहते कि तुम्हारी डायलॉग डिलविरी में यह कमी थी, फेस का एक्सप्रैशन करेक्टर के मुताबिक नहीं है. कॉलेज से बाहर के ड्रामा स्पेशिलिस्टों को बुलाने से लेकर, इंटर कॉलेज ड्रामा कम्पीटिशन के वक्त छात्रों के साथ जाकर, उत्साह बढ़ाते थे.
अमिताभ बच्चन ऐसे ही मंजे हुए रंगमंच के कलाकार नहीं बन गए, उसमें सबसे बड़ी भूमिका फ्रैंक साहब की थी. घंटों पसीने में तर-बतर होकर रिहर्सल में डटे रहते थे. इसी वजह से कॉलेज ने कुलभूषण खरबन्दा, टी॰पी. जैन, दिनेश ठाकुर शक्ति कपूर, रवि बासवानी, सतीश कौशिक, कबीर खान, बी॰एस॰ बडोला, श्याम अरोड़ा जैसे कलाकारों को तैयार किया. कॉलेज के पुराने छात्र के मिलने पर हमेशा उनके मुँह से निकलता था What are you doing these days.
सांस्कृतिक गतिविधियों, खेलो के अतिरिक्त शैक्षणिक जगत में भी फ्रैंक साहब की धाक थी. आर्ट फैकल्टी में एमए की क्लास के विद्यार्थी बड़ी बेसब्री से उनका इंतजार करते थे, क्लास में लेक्चर देते समय सब्जेक्ट मैटर के साथ-साथ ठहाके और हंसी की आवाजें भी गूंजती रहती थी. कई बार बाहर के छात्र भी क्लास अटेंड करने के लिए आ जाते थे.
अमिताभ बच्चन के उस साक्षात्कार पर मेरा गुस्सा वाजिव था, परंतु जैसे-जैसे वह ऊँचाइयाँ छूते गए, उनका आदर किरोड़ीमल कॉलेज और विशेष रूप से फ्रैंक साहब के लिए प्रकट होता गया,कई साक्षात्कारों में उन्होंने यह कबूल किया.
हीनभावना से ग्रस्त अमिताभ बच्चन ने, कॉलेज में मिली अभिनय की तालीम तथा अपनी मैहनत, हुनर से अमिनय के क्षेत्र में जो शौहरत पाई उस कारण उनका होस्टल का कमरा नं॰ 66 ऐतिहासिक बन गया. अब कॉलेज होस्टल में दाखिला लेने वाले हर छात्र की तमन्ना होती है कि मुझे भी उसी कमरे में दाखिला मिल जाए. आज किरोड़ीमल के पुराने और नये छात्र फख्र के साथ महसूस करते हैं कि अमिताभ बच्चन हमारे कॉलेज के छात्र रहे हैं.
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