इतिहास बनते देखना चाहता है तो सैफ़ई जाएं !

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इतिहास बनते देखना चाहता है तो सैफ़ई जाएं !

 हफीज किदवई 

अगर कोई इतिहास बनते देखना चाहता है तो सैफ़ई चला जाए . हमने अखिलेश यादव को देखा है, कई बार देखा है, मगर यह सैफ़ई के अखिलेश उन सबसे बहुत अलग हैं . लोग रोते बिलखते पहुँचते हैं, तो वह उन्हें चुप कराते हैं, धैर्य धारण करने को कहते हैं और कहते हैं कि आप अकेले नही हैं, हम आपके साथ हैं .

अखिलेश यादव के ख़िलाफ़ दिन रात बोलने वाले भी आते हैं, वह उन्हें साथ बैठाते हैं और कुछ भी ऐसा नही कहते कि उनके विरोधी की आँखे शर्मिंदगी से झुक जाएँ . औरतें आती हैं, बच्चे आते हैं, युवा आते हैं, तो नेता,कलाकार,लेखक,खिलाड़ी,वकील आते हैं, अधिकारी आते हैं, वह सबके साथ बैठते हैं . किसान और मज़दूर आते हैं, उनके साथ बैठकर उनके दुःख में शामिल होते हैं ..सुबह से शाम तक रोज़ ही तो यह हो रहा है मगर वह इंसान बिना थके,बिना बुझे हर एक से मिल रहा कि उन्हें नेताजी की कमी न महसूस हो .


मैं सैफ़ई में एक बेटे को देख रहा हूँ,जो इस कमरे से उस कमरे,इस आंगन से उस आंगन,इस बारामदे से उस बारामदे और इस गेट से उस गेट तक दौड़ दौड़ हर आने वाले के साथ बैठ रहा है . मेरी समझ में नही आता कि अंत्येष्टि के इतने दिनों के बावजूद,लोगों का मिलना कम क्यों नही पड़ रहा,क्यों नही लोग रुक रहे और क्यों नही यह बेटा बैठ रहा है .


इस देश में कई अंतिम संस्कार और उसके बाद का काम और उसमें मौजूद भीड़,बहुतों ने देखी है मगर हमने जो देखा है, उसमें नेता जी की अंत्येष्टि और उनके पीछे खड़े अखिलेश को देखता हूँ और सैफ़ई की तरफ जाती भीड़,तो लगता है कि यह पल आंखों में संजो लेने चाहिए,इसे तारीख़ मे दर्ज कर देना चाहिए कि किसी लीडर को आज भी लोगों की इस क़दर मोहब्बत हासिल है, जो दूसरों के लिए एक ख्वाब है .


सैफ़ई में अखिलेश यादव की सादगी को देखिये,कभी दो रँग की चप्पल में तो कभी पांव से बड़ी चप्पल में,वह हर एक से मिल रहे . बूढ़ों के लिए लपक कर बाहर आते तो नौजवानों को पास बैठाते, यह कितना अपनेपन से भरा है . कभी श्रद्धांजलि देने आई औरतों में जाते तो कभी उस बच्चे को सीने से लगाते, जो नेताजी की मोहब्बत में घर से भाग आया . क्या इसे दर्ज नही करना चाहिए . एक लायक बेटे का पिता की विरासत को उसी मोहब्बत और ख़ुलूस के साथ चलाते हुए देखना, मेरे लिए कभी न भूलने वाला पल है .


"हफ़ीज़ तुम ठीक हो" अखिलेश जी का यह बात अंत्येष्ठि के दूसरे दिन मुझसे पूछना झकझोर गया . पूछना तो हमें था कि आप कैसे है, पूछा उन्होंने . मेरी आँखों में आँसू उस बेटे के लिए नही आए,जो मेरे सामने था,मेरे आँसू, उस बेतहाशा भीड़ को देखकर आए,जो देर रात तक घर के आंगन में चुपचाप बैठी थी . मुझे लगा नेता जी नही हैं अब,तो इनकीं कौन सुनेगा मगर देखते देखते अखिलेश जी ने हर दर्दमंद को अपना लिया,उन्हें पास बैठा लिया,उनकी सुन ली बिना यह कहे कि भाई मेरे पिता नही रहे,मुझे दुःख है, मुझे तो रो लेने दो,वह दूसरों को खामोश करने लगे,उनके आंसू पोछने लगे .


सैफ़ई में एक दौर का सूरज डूबा, तो हम अपने दौर का सूरज उगते देख रहे हैं . यह सारी भीड़,यहां हर आने वाला,नेताजी के बाद अखिलेश जी से मिलना चाहता है . उनके साथ बैठना चाहता है और यह रोज़ हो रहा है . आने वाले कम नही हो रहे और अखिलेश जी मिलने से रुक नही रहे . कल 21 को सब जगह श्रद्धांजलि सभा है, मेरे देखते देखते सैकड़ों शोकसभा हो चुकी हैं . यह अजब सिलसिला है, अजब प्रेम है, भरोसा है कि एक नया इतिहास बन रहा है .

नेताजी से प्रेम में देश का हर कोने का लीडर अखिलेश तक पहुँच जाना चाहता है . सबसे बेहतरीन बात है कि आप उनसे नेता जी की जन्मस्थली पर मिल रहे हैं . उस स्थान पर जिसे,वह बेइंतेहा चाहतेथे . कौन अपने गांव से,अपनी दहलीज़ से,अपनी मिट्टी से इतनी मोहब्बत करता है . नेताजी ने जीवन में यह प्रेम कभी ओझल नही होने दिया,तो उनके बाद अखिलेश जी ने वहीं बैठकर,सबको सैफ़ई आने दिया,की नेताजी को उनकी माटी में महसूस करो .

सैफ़ई इन दिनों एक इतिहास गढ़ रहा है, यहां से लौटने के बाद अखिलेश यादव जो बनकर लौटेंगे,उसका असर बहुत सालों तक अपना रंग दिखाएगा . एक बेटा अपने पिता की माटी में टहलकर, लोगों के प्रेम को महसूस करके, जब बाहर आएगा,वह एक अलग लीडर होगा,जो अपनी बहुत बड़ी रेखा खींचने निकल जाएगा .प्रेम,शोक,अपनेपन,सादेपन, सरलता,सौम्यता,संवेदना,भावुकता और धैर्य के साथ क्षमा करने के सारे रूप देखने हों,तो सैफ़ई को देख लीजिए . अभी तो कितना कुछ लिखा जाना,कहना,बतलाना बाकी है, जो यहाँ रोज़ आकार ले रहा है...

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