लेकिन क्या अलविदा मुलायम कहा जा सकता है

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लेकिन क्या अलविदा मुलायम कहा जा सकता है

डा रवि यादव

लोहियीवादी समाजवाद के शिल्पकार धरती पुत्र के नाम से मशहूर शुरुआत में समर्थकों और जाते जाते सामान्य जन के बीच नेता जी के नाम से पहचाने जाने वाले मुलायम सिंह यादव  के अंतिम संस्कार की सभी रस्में पुत्र  अखिलेश यादव जी द्वारा पैत्रिक गाँव सैफई में शांति यज्ञ के साथ पूर्ण हो गई. लेकिन क्या अलविदा मुलायम कहा जा सकता है ?

यूं तो बहुत कुछ है जो मुलायम सिंह को अलविदा कहने से रोकता है लेकिन  कम से कम कुछ मुद्दे तो आज पहले से अधिक ज्वलंत रुप  से भारतीय समाज के सन्मुख  है जिनके हल के लिए  समाजवाद और मुलायम सिंह का होना पहले से अधिक  प्रासंगिक ही नहीं अवश्यक  है.

1.  पूँजीवाद के शोषण और साम्यवाद के दमन से बचने की एकमात्र व्यवस्था का नाम समाजवाद है.

2. आजादी के बाद सामान्य धारणा धर्म निरपेक्षता के पक्ष में थी जो आज नहीं है .

3. सभी पार्टियों का नेतृत्व संवैधानिक अधिकारों की बात  जरूर करता था भले लागू करने के प्रति इच्छुक न हो.

4. मीडिया , फिल्में मजदूरों , किसानो ,बंचितों के अधिकार की वकालत करते थे - जितेंद्र अभिनीत फिल्म  लोक परलोक में अभिनेता  यमलोक में यमराज के शोषण के विरुद्ध  कर्मचारियों की यूनियन  बना देता है आज समाज में अलगाव पैदा करने की कोशिश चरम पर है.


 मुस्लिमों से रणनीतिक दुश्मनी रखने वाले लोग अखंड भारत की रणनीतिक बात भले करें अखंड भारत के हमेशा खिलाफ रहे है भारत- पाक- बंग्लादेश का एक संघ बनानें की बात लोहिया और अब मुलायम सिंह के जाने के बाद स्वप्न ही रहेगी.आजादी के आन्दोलन में अँग्रेजों के साथ खडे कमीनिस्ट  हों या विपरीत ध्रुव रहे कम्युनिस्ट दोनों का राष्ट्रवाद खोखला है हां समाजवादी भारतीय राष्ट्रवाद के सच्चे प्रतिनिधि थे और आज भी है.


मुलायम सिंह यादव लोहियवादी समाजवाद को ज़मीन पर उतारने वाले सबसे बड़े राजनेता थे . यूँ तो  उन पर लोहियावाद या समाजवाद से भटकने के आरोप भी लगातार लगाए गए मगर वे आरोप सामान्यरूप से प्रतिद्वंदियों की राजनीतिक मजबूरी से अधिक कुछ नहीं थे. मुलायम सिंह समाजवाद और संविधान के प्रति इतने अधिक शंकल्पित समर्पित थे जितना अधिक हुआ जाना संभव हो सकता है. किसी भी सिद्धांत या परिकल्पना को व्यावहारिक रूप अक्षरश: नहीं दिया जा सकता . व्यवहार में सिद्धांत से कुछ बिचलन होता ही है. साम्यवाद कही मार्क्स के अनुरूप नहीं है और पूँजीवाद भी कहीं लार्ड कींज के अनुरूप नहीं है.


दुनियाँ में अवधारणाएँ हमेशा प्रभुत्व वर्ग द्वारा ही बनाई ज़ाती रही है. सभी जानते है किस तरह तथ्यों को ट्विस्ट देकर अपनी पसंद और रुचि के अनुसार प्रस्तुत किया जा सकता है . संस्थाएँ किस तरह साधन सम्पन्न और प्रभुत्व वर्ग के लिए काम करती है . भारत में यह अन्य देशों से भी अधिक होता रहा है . कोई शासित वर्ग का व्यक्ति शासितों - शोषितों के अधिकारों की ही बात नही कर रहा लोकतंत्र का लाभ लेकर शासक बनने की कौशिश कर रहा हो तो परम्परावादी प्रभुत्व वर्ग की आँख की किरकिरी बनना स्वाभाविक ही था. अतः मुलायम सिंह को शून्य से शिखर तक पहुँचने के बीच न केवल बहुत से उतार चढ़ाव से गुज़रना पढ़ा बल्कि निराधार आरोपी से भी गुज़रना पढ़ा - 


जातिवादी


मुलायम सिंह की पार्टी में उनके अलावा अन्य शक्तिशाली नेताओं में जनेश्वर मिश्र, ब्रिजभूषण तिवारी , रमाशंकर कौशिक , मोहन सिंह , कपिल देव सिंह , अमर सिंह , आज़म खान ,  राम शरण दास , बेनी प्रसाद वर्मा , रेवती रमण सिंह , रजबब्बर का नाम लिया जा सकता है जो यादव के अलावा अन्य वर्ग से है मगर आरोप लगाने वाले सफल रहे.


दलितों की अनदेखी


मुलायम सिंह पर समाजवादी होने के बावजूद दलितों की अनदेखी का आरोप स्वयंभू दलित चिंतक और बहुजन बुद्धिजीवी भी लगाते रहे है जबकि हक़ीक़त ये है कि गांधी के बाद मुलायम सिंह दलित हित के लिए काम करने वाले सबसे बड़े ग़ैर दलित नेता है. इस तथ्य से संभवतः इंकार करना संभव न हो कि देश में बाबा साहब के दलित चेतना के आर्कीटेक्ट को अमलीजामा पहनाने वाले सबसे बड़े नेता श्रद्धेय काशी राम थे जिन्हें काशी राम बनने के लिए एक मुलायम सिंह की अनिवार्य अवश्यकता थी . जो उन्हें यू पी में मिल सके और इसलिए काशी राम जी यूपी में सफल हुए . वे यू पी से अधिक दलित संख्या वाले पंजाब और यूपी से अधिक दलित आंदोलनों की भूमि महाराष्ट्र में सफल नहीं हो सके क्योंकि वहाँ उन्हें किसी मुलायम सिंह का साथ नहीं मिला. मगर दुर्भाग्य मुलायम सिंह का और उनसे अधिक दलितों बहुजनों का कि बहुजन एकता विरोधी ताकते सफल हुई और दलित अपने मशीहा को पहचान पाने में विफल रहा.


माफ़िया का राजनीतिकरण 


मुलायम सिंह पर माफ़ियावाद का आरोप  ब्रिजेश सिंह , धनंजय सिंह , अजय सिंह बिष्ट , बादशाह सिंह पिंटू सिंह कुलदीप सिंह सेंगर बबलू सिंह , अजय मिश्रा टेनी जैसे नायाब हीरे रखने वाली पार्टी द्वारा न केवल लगाए गए बल्कि चस्पाँ करने में कामयाबी भी पाई. 


समाजवाद धर्मनिरपेक्षता सामाजिक न्याय से आगे बढ़कर  मुलायम सिंह यादव होंने का एक और भी अर्थ था वह यह कि वैचारिक विरोधी सिर्फ प्रतिद्वंदी  होता है दुश्मन  नही , भले वह विरोधी उन्हे मौलाना , हिन्दुत्व विरोधी कहने वाला और 1990 के दौर में कुत्तो गधो पर मुलायम सिंह नामकी तख्तियां लगाने वाला हो या सीबीआई का दुरुपयोग कर राजनीतिक अहित करने वाले  . अपने व्यक्तित्व और व्यवहार से मुलायम सिंह ने उन विरोधियों को भी खिराज-ए-अकीदत पेस करने के लिए मजबूर किया . कटुता पूर्ण सार्वजनिक जीवन में अभी उम्मीद के बचे होंनें की आश्वस्ति , नाउम्मीदी के दौर में उम्मीद के चिराग थे मुलायम .


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