लोहिया, जेपी और नरेंद्रदेव को कभी याद करते हैं कांग्रेसी

लोहिया, जेपी और नरेंद्रदेव को कभी याद करते हैं कांग्रेसी लोहिया, जेपी और नरेंद्रदेव को कभी याद करते हैं कांग्रेसी सवाल कांग्रेस या भाजपा के बीच चुनाव का नहीं , सांप्रदायिकता और तानाशाही के विरोध में खडे़ होने का है गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा

लोहिया, जेपी और नरेंद्रदेव को कभी याद करते हैं कांग्रेसी


रमाशंकर सिंह 

कभी किसी सोशलिस्ट नेता विचारक स्वतंत्रतासेनानी को आज तक कांग्रेस ने ससम्मान याद किया है ? किसी की भी तस्वीर मात्र भी  कांग्रेस कार्यालयों में है ? स्कूलों के पाठ्यक्रमों में उनके त्याग बलिदान का ज़िक्र आने दिया है ? मरणोपरांत भी किसी को सम्मानित किया है ? यही हाल मुख्यधारा की दूसरी पार्टी भाजपा का है । 

मैं कुछ ही नाम गिनाता हूँ - आचार्य नरेंद्र देव, युसुफ मेहरअली,डा० राममनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, ऊषामेहता, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, अच्युत पटवर्धन, मीनू मसानी, मधु लिमये , कर्पूरी ठाकुर , चंद्रशेखर, मामा बालेश्वर दयाल , अब्दुल बारी सिद्दीक़ी, राजनारायण , मधु दंडवते, हरि विष्णु कामथ , नाथ पै, एस एम जोशी , नारायण गोरे, कैप्टेन अब्बास अली , रामसेवक यादव, सूरज नारायण सिंह , बदरीविशाल पित्ती आदि आदि ! 


और बड़ी संख्या में कई सोशलिस्ट कार्यकर्ता और स्वयंभू चिंतक इस बुढ़ापे में भी अब न जाने क्या हसीन सपने पाल कर कांग्रेस के अंधसमर्थन में बिछे जा रहे हैं । दो कौड़ी में कांग्रेस पूछती नहीं है फिर भी मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि अपने वैचारिक मुद्दों पर अड़ कर , मनवा कर समर्थन या दूरी क्यों नहीं तय कर सकते ? विचार आधारित राजनीति क्यों नहीं हो पा रही ? क्या बचा है जो खो जायेगा इनका ? उन एकाध अपवादों को छोड़ दीजिये जो नौकरी करने लगे हैं या किसी पद के लिये आज भी लालायित हैं। 


बुनियादी समाजवादी मूल्य जिन पर पूरा जीवन काम किये हैं , खपायें है ; उसके लिये वचनबद्ध होकर क्यों संगठित लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती सरकारों के खिलाफ। जीवन के संध्याकाल में तो वैसे भी आ चुके हैं तो इस संघर्ष में भी अधिकतम क्या होगा - जेल या मौत ! सत्ताओं के खिलाफ एक बहादुर सोशलिस्ट की भाँति अंत हो ! कायर मरघिल्ले याचक की तरह नहीं !

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :