रमाशंकर सिंह
कभी किसी सोशलिस्ट नेता विचारक स्वतंत्रतासेनानी को आज तक कांग्रेस ने ससम्मान याद किया है ? किसी की भी तस्वीर मात्र भी कांग्रेस कार्यालयों में है ? स्कूलों के पाठ्यक्रमों में उनके त्याग बलिदान का ज़िक्र आने दिया है ? मरणोपरांत भी किसी को सम्मानित किया है ? यही हाल मुख्यधारा की दूसरी पार्टी भाजपा का है ।
मैं कुछ ही नाम गिनाता हूँ - आचार्य नरेंद्र देव, युसुफ मेहरअली,डा० राममनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण, ऊषामेहता, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, अच्युत पटवर्धन, मीनू मसानी, मधु लिमये , कर्पूरी ठाकुर , चंद्रशेखर, मामा बालेश्वर दयाल , अब्दुल बारी सिद्दीक़ी, राजनारायण , मधु दंडवते, हरि विष्णु कामथ , नाथ पै, एस एम जोशी , नारायण गोरे, कैप्टेन अब्बास अली , रामसेवक यादव, सूरज नारायण सिंह , बदरीविशाल पित्ती आदि आदि !
और बड़ी संख्या में कई सोशलिस्ट कार्यकर्ता और स्वयंभू चिंतक इस बुढ़ापे में भी अब न जाने क्या हसीन सपने पाल कर कांग्रेस के अंधसमर्थन में बिछे जा रहे हैं । दो कौड़ी में कांग्रेस पूछती नहीं है फिर भी मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि अपने वैचारिक मुद्दों पर अड़ कर , मनवा कर समर्थन या दूरी क्यों नहीं तय कर सकते ? विचार आधारित राजनीति क्यों नहीं हो पा रही ? क्या बचा है जो खो जायेगा इनका ? उन एकाध अपवादों को छोड़ दीजिये जो नौकरी करने लगे हैं या किसी पद के लिये आज भी लालायित हैं।
बुनियादी समाजवादी मूल्य जिन पर पूरा जीवन काम किये हैं , खपायें है ; उसके लिये वचनबद्ध होकर क्यों संगठित लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती सरकारों के खिलाफ। जीवन के संध्याकाल में तो वैसे भी आ चुके हैं तो इस संघर्ष में भी अधिकतम क्या होगा - जेल या मौत ! सत्ताओं के खिलाफ एक बहादुर सोशलिस्ट की भाँति अंत हो ! कायर मरघिल्ले याचक की तरह नहीं !
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