सड़क पर से बर्फ़ अब पिघल चुकी थी

गोवा की आजादी में लोहिया का योगदान पत्रकारों पर हमले के खिलाफ पटना में नागरिक प्रतिवाद सीएम के पीछे सीबीआई ठाकुर का कुआं'पर बवाल रूकने का नाम नहीं ले रहा भाजपा ने बिधूड़ी का कद और बढ़ाया आखिर मोदी है, तो मुमकिन है बिधूड़ी की सदस्य्ता रद्द करने की मांग रमेश बिधूडी तो मोहरा है आरएसएस ने महिला आरक्षण विधेयक का दबाव डाला और रविशंकर , हर्षवर्धन हंस रहे थे संजय गांधी अस्पताल के चार सौ कर्मचारी बेरोजगार महिला आरक्षण को तत्काल लागू करने से कौन रोक रहा है? स्मृति ईरानी और सोनिया गांधी आमने-सामने देवभूमि में समाजवादी शंखनाद भाजपाई तो उत्पात की तैयारी में हैं . दीपंकर भट्टाचार्य घोषी का उद्घोष , न रहे कोई मदहोश! भाजपा हटाओ-देश बचाओ अभियान की गई समीक्षा आचार्य विनोबा भावे को याद किया स्कीम वर्करों का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न क्या सोच रहे हैं मोदी ?

सड़क पर से बर्फ़ अब पिघल चुकी थी

शंभूनाथ शुक्ल 

हम वापस लौटे, क्योंकि ठंड बढ़ती जा रही है .सड़क पर से बर्फ़ अब पिघल चुकी थीइसलिए एडवोकेट साहब ने गाड़ी की स्पीड अब थोड़ी अधिक रखी .गंगनानी के आगे एक समतल घाटी में नदी किनारे जंगल के बीच एक छोटा-सा ढाबा था .जिसमें चाय पी गई और एक-एक प्लेट मैगी खाई गई .अगर आप किसी भी पर्वतीय क्षेत्र में जाएँ तो मैगी अवश्य खाएँ .वहाँ जगह-जगह मैगी पॉइंट मिल जाते हैंकाली मिर्च और लौंग डाल कर इन लोगों ने स्वीडिश मैगी को एक नया स्वाद दिया है .एक स्कूटी पर सवार तीन नौ युवा आए इनमें दो लड़के व एक लड़की थी .उन्होंने भी चाय व मैगी का स्वाद लियामैंने पूछा, कहाँ से आ रहे हैं? तो बताया कि वे उत्तरकाशी से हर्षिल पिकनिक पर गए थे .यानी डेढ़ सौ किमी का पहाड़ी सफ़र स्कूटी से? मैं अचरज में पड़ गया वह भी बर्फीली सड़क पर तीन जनें पंडित जी ने बताया कि ये पहाड़ी बच्चे हैं इनके लिए यह कोई नई बात नहीं.

हाँ, एक बात बताना मैं भूल ही गया कि हर्षिल गढ़वाल में गंगोत्री मार्ग पर सबसे मनोरम स्थल हैआख़िर इसे यूँ ही नहीं मिनी स्वीटज़रलैंड कहा जाताभागीरथी के दाएँ तट पर फैली बर्फ़ की चादर हर आने-जाने वाले का मन मोह लेती है .किंतु हिंदुस्तानी यहाँ पिकनिक के बहाने गंद भी बहुत फैलाते हैं .इस सफ़ेद चादर पर फैले खाने-पीने के पैकेट्स और पानी की बोतलें माहौल को प्रदूषित करती हैंहालाँकि हर्षिल में प्लास्टिक के थैलों पर रोक है, पर कौन मानता है.

चाय पीने के बाद हम निकल पड़ेअब रात घिर आई थीइसलिए हम लोग तेज़ी से लौट पड़े .पॉयलेट बाबा का मंदिर, मनेरी डैम होते हुए हम साढ़े सात बजे तक नैताला स्थित अपने गेस्ट हाउस में वापस आ गए .ठाकुर जी ने गरम पानी पिलाया और फिर चाय बनी .तब तक पंडित जी अलाव सुलगा दियाआज रात के भोजन में मड़ुआ की रोटी और भट की दाल थी .रात को हल्दी पड़ा दूधसाथ में पातंजलि के कुछ आयुर्वेदिक उत्पाद लिएचूँकि हम लोग काफ़ी थके हुए थे, अतः कुछ देर बाद सोने चले गए.

अगली सुबह तय हुआ कि हम लोग चौरंगी खाल जाएँ और वहाँ स्थित वन के अंदर चार किमी चढ़ कर नाचिकेता ताल भी देखने जाएँयह उत्तरकाशी की परली साइड में हैउत्तरकाशी से 12 किमी दूर पंडित जी की ससुराल मानपुर में नौटियालों के यहाँ हैउनके श्वसुर दयानंद नौटियाल बहुत ही मिलनसार और उत्साही बुजुर्ग हैंप्रधानाचार्य के पद से अवकाशमुक्त हुए उन्हें 18 वर्ष बीत चुके हैंगाँव सड़क से लगा हुआ हैवहाँ खूब बर्फ़ गिरती है और दिन को धूपहम लोग पहले भी उनके यहाँ एक रात गुज़ार चुके थेपर्वतीय अंचल के किसी घर में रात बिताने का अनुभव तो मज़ेदार है, किंतु मुझे याद आया कि उनके घर में दो दिक्कतें हैंएक तो बाथरूम बेडरूम से अटैच्ड नहीं है, बल्कि बहुत दूर है और अँधेरे में जाना बहुत मुश्किल हैदूसरे कमोड टॉयलेट नहीं हैतीसरे बेडरूम से अगर रात को पेशाब करने गए तो अक्सर तेंदुए की गुर्राहट सुनाई पड़ती हैमगर पंडित जी ने कहा, कि महराज 2013 से अब काफ़ी कुछ बदल चुका हैअब एक कमरे में बाथरूम अटैच्ड है और कमोड भी हैरात भर बिजली की रोशनी रहती हैमैं भी राज़ी हो गया.

नैताला से हम नाश्ता करने के बाद कोई साढ़े दस बजे निकलेउत्तरकाशी से थोड़ा पहले पातंजलि समूह का गो मूत्र प्लांट है, वहीं पर बने लोहे के पुल से भागीरथी पार की और उस तरफ़ की सड़क पर गाड़ी दौड़ने लगी आधा घंटे में हम मानपुर पहुँच गएनौटियाल साहब बहुत खुश हुएउन तक खबर पहुँच चुकी थी, इसलिए सड़क तक लेने आएपहाड़ में मकान सीढ़ियों की तरह होते हैंयहाँ भी जातिवाद और श्रेष्ठतावाद चलता हैजैसे ऊपर की साइड में मकान दलितों के फिर थोड़ा कम दलितों के और सबसे नीचे ब्राह्मणों और ठाकुरों के होंगे.

अब इसके साथ एक पाकिस्तान का भी क़िस्सा सुन लीजिएजो हमारे मित्र और ओरछा के पूर्व महाराजा मधुकर शाह ने सुनाया थामालूम हो कि ओरछा 1550 से 1950 तक एक ख़ुद मुख़्तार रियासत रही हैइसे बुंदेला क्षत्रिय वीर सिंह ने स्थापित कियावीरसिंह बादशाह अकबर के बेटे शहज़ादा सलीम का दोस्त था, इस नाते अकबर का विरोधी भीजब शहज़ादा सलीम ने बादशाह जहांगीर नाम धारण किया तो बुंदेलखंड को काफ़ी रियायतें दींबुंदेला बहुत बहादुर होते हैंइसी परिवार के अमर सिंह ने बादशाह शाहजहाँ को धता बताई थीबादशाह औरंगज़ेब के अत्याचारों के विरुद्ध छत्रसाल ने निरंतर संघर्ष किया थामधुकर शाह इस वंश के आख़िरी शासक थेकिंतु 1947 में उन्होंने अपनी रियासत का भारत संघ में विलय कर लियासंयोग से मधुकर शाह अभी जीवित हैं और दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाक़े में रहते हैंउनको खड़ी बोली हिंदी बोलने में दिक़्क़त होती हैंवे या तो बुंदेली में बतियाते हैं अथवा अंग्रेज़ी मेंउनका सुनाया क़िस्सा लिख रहा हूँ-

“भोपाल की बेगम के नाती नादरी की शादी 1981 सन् मां पाकिस्तान के लाहौर मां भई तीबराती के तौर पर नादरी साहब हमउं का लै गएपूरे लाहौर मां सोर मच गयो कि ईं शादी मां चार हिंदू भी आए हैं, उनमें से एक राजा हैअगवानी मां लाहौर के कमांडर इन चीफ राजा महमूद अली जनजुआ भी आए हतेआते ही उनने हमसे पूछी कि आप हिंदू हो? हमाए हां कहने पर उनने कही कौन कौम? यह सुनते ही हम भौंचक्का हुइ गए कि हाय राम ईं यो का पूछत हैं? खैर हम उनते कही कि कौम का हमें तो पता नहीं जनरल साहब पै हमाए पुरखा बताउत ते कि हम बुंदेला राजपूत हैंयह सुनते जनरल साहब ने खुसी मां हमें अपने गले से लगाय लओ औ बोले कि हमऊं राजपूत हैंअब कुछ हमऊं खुले पूछी कि जनरल साहब आपके नाम के आगे यो जनजुआ काहे लगा हैजनरल साहब खूब जोर से हंसे बोले कि भई जनजुआ यानी कि जनेऊहम बड़े ठाकुर हते मुसलमान हुई गए तो का भा? अपनी जाति तो बनी ही रहिएउसके बाद जनजुआ साहब ने हमाई बड़ी खातिरदारी करीहमें बिठाय के खिलावौ. इसके बाद महाराजा साहब ने पाकिस्तान के श्रेष्ठतावाद की पोल खोली।जनरल साहब बताने लगे कि देखिए, यहाँ जो पहाड़ पर नीचे की बस्ती आप डेख रहे हैं, वहाँ हम लोग बसते हैं और ऊपर गूजर लोगअर्थात् हर जगह पहाड़ों पर ऊँची कही जाने वाली जातियाँ नीचे की तरफ़ बसती हैं, ताकि वे खेतों को देख सकें और पानी की सहूलियत हो महाराजा ने सहज भाव से अपनी यात्रा का वृत्तांत सुनाया लेकिन मैं सोचने लगा कि पाकिस्तान और भारत में कोई फर्क नहीं है .दोनों जगह जातियां बराबर हैंएक ही तरह की बोली-बानी और एक ही तरह के लोगराजा साहब ने उसके बाद जो बातें बताईं उन्हें मैं नहीं लिख रहा हूं क्योंकि उससे कुछ जाति परस्तों और मजहब परस्तों को आपत्ति हो सकती है.

इसी तरह मान पुर में थेनौटियाल नीचे और दलित ऊपरकिंतु सरकारी योजनाओं के तहत सड़कें निकलीं तो ये नीची कही जाने वाली जातियाँ अनायास अमीर हो गईंसड़क किनारे बाज़ार लगे, होटल बनेपंजाबी व्यापारियों ने दलितों को पैसा दिया और ज़मीन ले ली.

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