डा शारिक़ अहमद ख़ान
हेलकैटों से मुलाक़ात.ये लखनऊ के मिलिट्री कैंटोनमेंट एरिया का ऑल सेंट्स गैरीसन चर्च है.चर्च के पास मेरा एक अड्डा भी है लिहाज़ा हम अक्सर आते-जाते चर्च को देखते हैं और कई बार अंदर भी गए हैं.चर्च विशाल परिसर में फैला हुआ है.आज जब अवध शिल्प ग्राम के हुनर हाट के मेले में जाने लगे तो मेरी मित्र ने कहा कि हम कभी इस चर्च के अंदर नहीं गए हैं.बस मेन रोड से देखा है.लिहाज़ा हमने गाड़ी को मेन रोड से लगी चर्च की सड़क की तरफ़ उतार दिया और हम लोग चर्च पहुंचे.चर्च में ताला बंद था और एक अर्धविक्षिप्त लग रही वृद्धा चर्च के मुख्यद्वार पर बिस्तर बिछाकर बैठी थी.उसके सब फटे-चिथड़े आसपास बिखरे थे.चर्च का कैंपस बड़ा है और पेड़ों समेत झाड़ियाँ ख़ूब हैं.हम लोग चर्च को घूमकर देखने लगे.जैसे ही चर्च के पीछे गए कि वहाँ एक युवती खड़ी नज़र आयी.उसने हमसे पूछ लिया कि 'आर यू मेंबर ऑफ़ दिस चर्च '.ये सुन हमने कहा नहीं.मेंबर तो नहीं है.फिर हम शुरू हो गए.लगे चर्च का इतिहास बताने.
हमने कहा कि दरअसल इस चर्च का निर्माण सन् 1860 में ब्रिटिश फ़ौज के सैनिकों की प्रार्थना के लिए किया गया.ये एंग्लिकन क्रिश्चियन समुदाय का चर्च है और इस समुदाय का इंडिया का पहला चर्च है.ये सुन युवती क़रीब आकर और ध्यान से सुनने लगी.ये देख हम और तेज़ हो गए.हमने आगे कहा कि इस चर्च को बनाने में उस दौर में इक्यानबे हज़ार रूपये ख़र्च किए गए थे.ये तब बड़ी रक़म मानी जाती.चर्च का विस्तार सन् 1908 में हुआ.चर्च की इमारत इंग्लैंड के एक कॉलेज की इमारत से प्रभावित है.इसके नक्शानवीस थे जॉन रेन्सम.क्योंकि यहाँ सैनिक जमावड़ा था इसलिए चर्च छावनी में ज़रूरी हो गया था.चर्च के ऊपर बालकनी भी बनी है जो अपने आप में अनोखी है.चर्च के भीतर की बेंच भी विशिष्ट शैली की बनी हैं.क्योंकि ये ऑल सेंट्स चर्च है लिहाज़ा ईसाईयों को सभी संप्रदायों मसलन मेथोडिस्ट.एंग्लिकन समेत वैसीलियन-कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट भी इस चर्च में उस दौर में एक साथ प्रेयर करते थे जो ब्रिटिश सेना का हिस्सा थे।हम आगे भी बोलते लेकिन मेरी मित्र ने हमें कोहनी मार दी.अब हम चुप हो गए.मित्र ने अब वहाँ खड़ी युवती से कहा कि ओके मैम.नाइस टू मीट यू.ये कह हम लोग चर्च के पीछे से पेड़ों की झुरमुट की ओर फ़ोटोशूट के लिए बढ़े.देखा तो वो युवती भी पीछे चली आ रही है.मेरी दोस्त ने अब स्त्री स्वभाव के अनुसार धीरे-धीरे कहना शुरू किया कि अब भाग जा हैलकैट.तू तो पीछे ही लग गई.कहीं भूतनी-वूतनी तो नहीं है बाबा.तुमसे उसने एक सवाल पूछा.तुम लगे चर्च का पूरा इतिहास बताने.हमने कहा कि हम इतिहासकार के तौर पर आदत से मजबूर हैं.ख़ैर.ये कोई पर्यटक होगी.बैग टांगे है.दोस्त ने कहा कि पर्यटक यहाँ अकेली सूने इलाक़े में क्या कर रही है.ये पर्यटक नहीं है.कोई और है.उधर वो युवती पगली की तरह पीछे-पीछे चली आ रही है।अब हम रूक गए.कैमरा निकाला.चर्च की तस्वीरें खींचने लगे.तभी वो अर्ध विक्षिप्त वृद्धा हाथ में छड़ी लेकर और इनर पहने प्रकट हुई.आकर कस के उसने डांटा कि ऐ बच्चों.यहाँ फ़ोटो लेना मना है.क्या हो रहा है फ़ोटोबाज़ी.छू ले ले.छू ले ले.भागो यहाँ से.जल्दी भागो.हो क्या रहा है.कौन हो.जनरल हूँ मैं जनरल.नहीं कर्नल.नहीं जनरल ही तो हूँ.भूल गई थी.जनरल.हाँ जनरल.छू।ये सब सुन हमको तो आयी हँसी लेकिन मेरी दोस्त वृद्धा का रूप देखकर डर गईं.कहने लगीं कि कहीं ये पगली डंडा ना चला दे.अब वो वृद्धा साथ आयी युवती की तरफ़ डंडा लेकर बढ़ने लगी.कहने लगी कि कर्नल हो.मैं जनरल हूँ.ये सुन उस युवती ने चीख मारी 'मम्मी' और मेरी दोस्त का हाथ आकर पकड़ लिया.मेरी दोस्त ने हमसे कहा चलो-चलो.तस्वीर ना खींचो.हमने कहा इस वृद्धा के कहने से तस्वीर ना खींचें.चर्च की तस्वीर खींचना कैसे मना हो सकता है।वृद्धा ने सुन लिया.कहने लगी कि मना है तो मना है.हमने मना किया।ये सुन हमको और हँसी आयी.हमने कहा क्या आपकी ही हम एक तस्वीर ले लें.ये तो मना नहीं है ना।वृद्धा ने कहा मना है.मेरी तस्वीर मना है.हर तस्वीर मना है.तस्वीर नहीं खींचना चाहिए.भागो यहाँ से भागो।अब हम लोग चल दिए.हमने आगे आकर पर्यटक मैडम से कहा कि अब आप जाएं.हम लोग चलते हैं.वो चली गईं.जब हम गाड़ी में बैठने लगे तो घूमकर एक बार वृद्धा की तरफ़ देखा.वृद्धा ने दिखाया डंडा और कहा भागो.जनरल का आर्डर भागो.सर्रपट भागो.सर्र।अब हम लोग चल दिए.
मुख्य मार्ग पर आए तो देखा पर्यटक मैडम आटो की तलाश में हैं.उधर ही जाना चाह रही हैं जिधर हम लोगों को जाना था.मतलब अवध शिल्पग्राम की तरफ़.हमने दोस्त से कहा पर्यटक मैडम को बैठा लें क्या.दोस्त ने कहा पर्यटक नहीं है वो.कुछ और है.सूने चर्च में पर्यटक लड़की अकेले क्या करेगी.हमने कहा कुछ और का मतलब.दोस्त ने कहा मतलब हेलकैट.वो बुढ़िया भी हेलकैट थी और ये भी है.अच्छा ये ख़ूब रहा कि आज पहली बार तुमको किसी ने डांटा.वो भी पगली बुढ़िया ने.कितने दिनों बाद डांट खाए.हमने कहा स्कूल के दिनों के बाद आज जाकर डांट खाए.स्कूल में टीचर ऐसे ही डांटा करतीं.सेर को सवा सेर मिलता है.हम सेर भर पागल हैं तो वो बूढ़ा सवा सेर पागल थीं.होना चाहिए ऐसा.सेर को सवा सेर मिलना चाहिए.
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments