सतीश जायसवाल
फ़ोनतेनहास में पांच सौ बरस पुराने दिन आज भी दुबके, दम साधे अपना पता देते हुए मिलते हैं जब यहां पोर्चुगीज रहा करते होंगे. इस पते तक पहुंचने का रास्ता 31 जनवरी रोड से होकर निकलता है. यहाँ पहुंचकर आदमी इस तारीख के साथ उस किसी घटना के रिश्ते ढूंढने लगेगा जो कभी यहाँ घटित हुयी होगी ? लेकिन वह यहां नहीं मिलेगी. यह 31 जनवरी 1891 ई० में स्पेन से पोर्तुगाल की मुक्ति का दिन है.
गोवा को पुर्तगाल से मुक्त हुए अब आधी सदी से भी अधिक हो चुके. लेकिन उनकी एक ऐतिहासिक तिथि को यहां, गोवा में मिटाया, हटाया या बदला नहीं गया है. हमारे यहां राज्यों और शहरों के नामों को बदलने के एक उन्मादी दौर के बावजूद गोवा में पुर्तगाली दिनों के नाम अभी सुरक्षित हैं.
चौराहे पर एक कलावीथिका है -- पंजिम पीपुल्स. लेकिन इस कला वीथिका से बाहर तो पूरे का पूरा फोनतेनहास ही रंगों और आकृतियों से सजा हुआ कोई कलावीथिका सा लगता है.
पोर्तुगालियों की रंग-संवेदना में पीले,नीले,बैंगनी और चटख लाल रंगों की प्रमुखता रही होगी. वह यहां के घर,दरवाज़े और छज्जों के पर भी मिलती है.होटल, रेस्त्रां और कैफे में भी. एक ऐसे ही कलात्मक चित्रों से सजे हुए कैफे में हमने कॉफी पी -- 'बॉम्बे कॉफी रोस्टर्स' में.
यह कैफे मुझे अपने यहां, रायपुर के "नुक्कड़" जैसा लगा. मुझे लगा कि कला संवेदनाओं से जुड़े इस कैफे और "नुक्कड़" के लोगों को एक-दूसरे के बारे में मालूम होना चाहिए. मैंने उन लोगों की फोटो भी लेनी चाही. लेकिन वहाँ, काउंटर पर बैठी लड़की डरकर काउण्टर के पीछे छिप गयी. वह कैमरे से डरी या कोई और बात होगी ? लेकिन उसका डरना और काउण्टर के पीछे छिपना भी एक कोमल प्रसंग सा हो गया. शायद उसका नाम नेहा होगा. वहाँ, कहीं लिखा हुआ दिखा था.
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