चंचल
रंगमंच की एक बड़ी शख्सियत बंसी कौल के न रहने की खबर अभी भाई रवींद्र मिश्रा से मिली . मन बहुत दुखी हुआ . बंसी से जान पहचान बहुत पहले से थी . बंसी 1973 में NSD से निदेशन में कोर्स कर वहीं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रिपेट्री से जुड़े . हमारी उनकी आत्मीयता उस समय बढ़ी जब वे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय व उसकी रिपेट्री से मंचित नाटकों का एक म्यूजियम तैयार कर रहे थे . उस म्यूजियम में भाई भानु भारती द्वारा निर्देशित एक नाटक : चंद्रमा सिंह उर्फ चमकू ' के सेट डिजाइन , कॉस्ट्यूम , वगैरह संग्रहित करने थे उस सिलसिले में बंसी ने हमसे सहयोग मांगा . हम ने भानु भाई के नाटक का सेट डिजाइन किया था . फिर तो बंसी जी भोपाल से जुड़ गए और एक लंबा गैप हुआ . अभी अचानक उनके न रहने की खबर ने दुखी कर दिया . भाई बंसी कौल के काम उन्हें लम्बी जिंदगी देंगे . अलविदा भाई बंसी कौल
दूसरी तरफ अमितेश कुमार ने लिखा है ,बंसी कौल ने भारतीय रंगमंच को बहुत प्रभावित किया था केवल अपने रंगकर्म से ही नहीं बल्कि अपने व्यक्तित्त्व से भी. उन्होंने एक मौलिक रंगभाषा की तलाश की विदूषकों की जिसका सफर 'आला अफसर' से शुरू हुआ था. उनकी रंग अभिकल्पना भी कमाल की होती थी. उनके व्यक्तित्त्व की सबसे खास बात यह है कि उन्होंने नई प्रतिभाओं को बहुत प्रोत्साहन दिया. भोपाल में स्थित उनकी रंग मंडली रंग विदूषक नए कलाकारों की शरणस्थली भी थी. उनके द्वारा निर्देशित नाटकों में मुझे सबसे प्रिय 'जिंदगी और जोंक' लगा. रानावि दे पास आउट होने के बाद उन्होंने समाज मे हाशिये पर रह रहे लोगों के साथ काम किया. बाल रंगमंच में भी सक्रिय रहे. कुछ दिनों से बीमार थे लेकिन हौसला कम नहीँ हुआ था. बंसी कौल का जाना सचमुच बड़ी क्षति है.
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