अंबरीश कुमार
कई बार साहित्य से कटना बड़ी समस्या पैदा कर देता है .आज ही सुबह अपने संपादक का फोन आया कि लखनऊ में सार्क देशों के साहित्यकारों का बड़ा कार्यक्रम हो रहा है और जनसत्ता में कोई खबर नहीं है .खास बात यह भी है इस कार्यक्रम में सार्क देशो के जिन लेखकों को सम्मानित किया गया था उनमे जनसत्ता के संपादक ओम थानवी भी शामिल थे और वे कल से लखनऊ में थे .मैंने कहा अभी आता हूँ और फिर तहलका के हिमांशु वाजपेयी को तलाशा और कहा क्लार्क्स होटल पहुंचे इस साहित्य के कार्यक्रम की कवरेज में मदद करे .अपना साहित्य का ज्ञान बहुत कम है .खाई वहां पहुंचे तो कुछ पुराने लोग मिले जिसमे राम किशोर भी थे ..चाय पर नेपाल की बड़ी साहित्यकार से मुलाकात हुई तो फिर लाहौर के पास का सूफी परम्परा वाला मलंग नृत्य देख कर हैरान रह गया .ढोल पर पांच नौजवान जो काले कपडे और बड़े बालों के साथ पैर में घुंघरू बांध नृत्य कर रहे थे उसे देखना भी गजब का अनुभव था ..इस नृत्य के बाद मेरी मुलाकार पाकिस्तान की युवा लेखिका और कई धारावाहिक की निदेशिका फरहीन से हुई .वे अपनी कहानियों और किरदारों की बोल्डनेस के बारे में बताने लगी .तो मैंने कहा ,हम मंटों के प्रशंसक है .इस पर उनका जवाब था ,मुझे पाकिस्तान में लेडी मंटों कहा जाता है .फिर उन्होंने जेल में लड़कियों को लेकर अपने लिखे का ब्यौरा दिया .फिर तय हुआ शाम को विस्तार से बातचीत होगी .पर फरहीन का 'लेडी मंटों' वाला वाक्य देर तक गूंजता रहा .
फरहीन फेसबुक प़र है और उन्होंने कहा .मै दोस्ती का पैगाम भेजती हूँ .बातचीत हो जाए तो फिर और ..वर्ष 2012 की एक पोस्ट से
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